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Saturday, March 2, 2013

पिछली शरीर यात्रा का अगली शरीर यात्रा पर प्रभाव


प्रश्न: पिछली शरीर यात्रा का अगली शरीर यात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर: पिछली शरीर यात्रा में जो पराभव से त्रस्त रहे, वह पराभव नहीं चाहता है, विभव चाहता है।  जीवन सदा विभव चाहता है।  जन्म और मृत्यु जीवन के लिए एक घटना है।  जैसा अभी जिया, अगली शरीर यात्रा में उससे अच्छा जीने की स्वीकृति के साथ शरीर छोड़ता है।

प्रश्न: यह कैसे होता है?

उत्तर: कल्पनाशीलता से।  हर मानव में कल्पनाशीलता है, उसके बदौलत इस शरीर यात्रा में जिसको "अच्छा" मानता है, उससे "ज्यादा अच्छे" के लिए सोच लेता है।  कोई दारु पीने में "अच्छाई" सोचता है, कोई चोरी करने में "अच्छाई" सोचता है, कोई धोखा देने में "अच्छाई" सोचता है।  हर व्यक्ति सोचता ही है।  सोचता नहीं हो, ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है।  कोई किसी मुद्दे पर सोचता है, तो कोई किसी दूसरे मुद्दे पर।  अब यहाँ सर्वमानव के लिए, सर्वशुभ के अर्थ में सोचने की बात शुरू किये हैं।  इसीलिए इस अनुभव शिविर का आयोजन है।  अपने-अपने विचार के अनुसार सोचने वाले बहुत हो चुके, मर चुके।   हर व्यक्ति जन्मता है, तो किसी भाषा (वहां के परिवेश के अनुसार) के साथ ही जन्मता है।  उस भाषा के अनुसार वह सोचता ही है।

प्रश्न: शरीर से अलग हो जाने के बाद भी क्या जीवन प्रभाव डालता रहता है?

उत्तर: भ्रमित जीवन जीते समय भी भ्रम का प्रभाव डालता है, मरने के बाद भी भ्रम का प्रभाव डालता है।  जागृत जीवन जीते समय भी जागृति का प्रभाव डालता है, मरने के बाद भी जागृति का प्रभाव डालता है।



प्रश्न:  शरीर छोड़ने के बाद जीवन के पास पिछली शरीर यात्रा की सकारात्मकता साथ बनी रहती है या मिट जाती है?

उत्तर: जितना सकारात्मकता को लेकर किये रहते हैं, उससे आगे करने का अधिकार बना रहता है।  चित्रण तक शरीर से सम्बद्ध रहता है।  जितने पक्ष का (जागृति के अर्थ में) साक्षात्कार किया रहता है, वह अगली शरीर यात्रा में उसको सुलभ हो जाता है।

प्रश्न: सुलभ हो जाने से क्या आशय है?

उत्तर: सुलभ होने से आशय है - अगली शरीर यात्रा वहीं शुरू करते हैं, जहाँ जीने वालों में पिछली शरीर यात्रा की सकारात्मकता उपलब्ध रहे।  यह जागृति के अर्थ में ही साम्य हो पाता है।  जागृति से पहले अपना-अपना विचार, अपनी-अपनी सकारात्मकता होती है।

- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (अनुभव शिविर, २०१३ अमरकंटक)

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