हर मानव के जीने में चार भाग रहता है - अनुभव, विचार, व्यवहार और कार्य (व्यवसाय). इसमें से अनुभव के बारे में मैं आप सबसे यहाँ इस "अनुभव शिविर" में सुनना चाहता हूँ। अनुभव के बिना कोई प्रमाण होता नहीं है। अनुभव के बिना कोई व्यक्ति प्रमाणित होगा नहीं। कोई व्यक्ति यदि कहता है कि वह "प्रमाणित" है, तो उसके अनुभव को सुनो।
प्रश्न: अनुभव कैसे सुना जाता है?
उत्तर: अनुभव प्रमाणों के रूप में सुना जाता है। पहला प्रमाण है - "अनुभव प्रमाण"। सहअस्तित्व में अनुभव होता है। सहअस्तित्व (सत्ता में संपृक्त जड़ चैतन्य प्रकृति) अनुभव में आये बिना प्रमाण होता भी नहीं है। इसको मैंने देखा है - इस आधार पर इतने मजबूती से मैं कह रहा हूँ। जीवन ज्ञान, सहअस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान का प्रमाण मानव के रूप में हम देख पायेंगे। अनुभव को हम (इन्द्रियों से) देख नहीं पायेंगे। अनुभव मूलक प्रमाण को देख पायेंगे। अनुभव को समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व स्वरूप में प्रमाणित करते हुए मानव को हम देख पायेंगे। मानव के बोलने, सोचने और जीने में संगीत (तालमेल) होने से सहअस्तित्व में अनुभव के प्रमाण का पता चलता है। सहअस्तित्व में अनुभव का प्रमाण चारों अवस्थाओं के साथ जीने में ही पता चलता है। जीने में ही समस्या और समाधान का पता चलता है।
अभी तक मानव "विचार" करने तक पहुंचा है। विचार में ही "सुख"-"दुःख" को मान लेता है। "सुख"-"दुःख" (अच्छा लगना, बुरा लगना) के विचार को अनुभव मान लेता है - पर वह बोध-अनुभव नहीं है। वह समाधान नहीं हो पाता है। सहअस्तित्व में अनुभव पूर्वक ही समाधान हो पाता है। समाधान होने के बाद, श्रम के आधार पर समृद्धि होता है। समाधान के बाद ही समृद्धि का अनुभव होता है, उसके पहले होने वाला नहीं है। सर्वमानव के लिए समाधान, सभी परिवारों के लिए समृद्धि और उसके अर्थ में सार्वभौम व्यवस्था और संस्कृति को प्रस्तावित करना "उचित" है या "अनुचित" है - आप सोच करके बताइये। अनुभव को देखना है या नहीं? और किसी विधि से सर्वशुभ हो सकता है या नहीं? जिनको केवल बात करनी है, जीना नहीं है - उनको इस बात से तकलीफ ही तकलीफ है।
प्रश्न: आपके हिसाब से, हम लोग आगे बढ़ रहे हैं या वहीं के वहीं अटके हैं?
उत्तर: - आगे बढ़ रहे हैं, तभी तो मैं पीछे पड़ा हूँ! इस ९४ वर्ष की आयु में भी!!
१५ वर्ष पहले जब अनुभव शिविर लगाते थे तो लोग अपना ऐसा उदगार व्यक्त करते थे - "आपके संपर्क में हम कैसे आ पाए?" कुछ वर्षों से यह सुनने में आने लगा - "हम समझ चुके हैं, प्रमाणित होना शेष है।" अनुभव के बिना प्रमाण नहीं होता। अनुभव के बिना कोई प्रमाण होता हो तो आप कर लेना! "हम समझ चुके हैं, प्रमाणित होना शेष है।" - ऐसा सुनने के बाद, अब अनुभव कितने लोगों को हुआ है, उसको देखना है। आप बताइये - अनुभव को जांचना शुरू करना चाहिए कि नहीं?
मैं बचपन में जब किसी लायक नहीं था, कुछ समझा नहीं था, तब से ही उपदेश देता था। उपदेश के अनुसार मेरा जीना नहीं बना। इसी कष्ट को मिटाने के लिए तो मैंने साधना ही किया। साधना विधि से जो प्राप्त हुआ उसको बता रहे हैं। अनुभव मूलक विधि से सब ठीक होता है, अन्यथा कुछ ठीक होता नहीं। अनुभव का अनुकरण करो या स्वयं अनुभव करो! (सब समय दूसरे व्यक्ति का) अनुकरण करना बनता नहीं है। स्वयं अनुभव करना आवश्यक है। इसीलिये अनुभव शिविर को लगाते हैं।
- अनुभव शिविर, अमरकंटक - जनवरी २०१३
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