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Wednesday, March 13, 2013

जिज्ञासा समझने के लिए तैयारी है


प्रश्न: अनुभव की स्थिति के बारे में तो आपने तीन प्रमाण (अनुभव प्रमाण, व्यवहार प्रमाण और प्रयोग प्रमाण) बताया।  अनुभव के पहले की क्या स्थितियां होती हैं?

उत्तर: अनुभव के पहले है - अध्ययन।  अध्ययन के पहले है - पठन।  पठन के पहले है - अपेक्षा।  अपेक्षा के पहले है - जिज्ञासा।  जिज्ञासा के पहले है - शंका।  जिज्ञासा समझने के लिए तैयारी है।

प्रश्न: "जीव चेतना" से "मानव चेतना" तक के विकास में क्या कोई "क्रम" है या नहीं?

उत्तर: विकल्प का अध्ययन ही क्रम है।

प्रश्न:  अध्ययन पूर्वक हम अनुभव की ओर अग्रसर हो रहे हैं या नहीं - इसकी जाँच का क्या मापदंड है?

उत्तर: अध्ययन करते हैं तो समझ में आ रहा है।  समझ में आ रहा है तो आप मे विश्वास हो रहा है।  विश्वास हो रहा है तो और समझ में आ रहा है।  इस तरह पूरा समझ में आने के बाद प्रमाणित होता है।

प्रश्न: प्रमाण के पहले क्या व्यक्ति के "जीने" में कोई गुणात्मक परिवर्तन दिखेगा?

उत्तर: जब कभी प्रमाणित होगा, तभी दिखेगा।  उसके पहले जैसा सामान्य आदमी को दिखता है, वैसा ही दिखेगा।  अभी तक सामान्य आदमी में ऐसा है - जब तक जीता है, झगडा।  मरने के बाद, पूजा!  भ्रम होता है और जागृति होता है, और कुछ होता ही नहीं है।


प्रश्न: बहुत सारे अंतर्विरोधों में जो मैं पहले रहता था, अब वे मुझमे नहीं दिखते।  अभी मुझे अनुभव तो नहीं हुआ है, पर इसको मैं "उपलब्धि" के रूप में देखूँ या नहीं?

उत्तर: वह उपलब्धि कैसे हुआ?  इस विकल्प के अध्ययन पूर्वक हुआ या आपके पूर्व विचार के आधार पर हुआ?  विकल्प के अध्ययन पूर्वक हुआ तो उसे उपलब्धि के रूप में देखें, किन्तु वहाँ रुकें नहीं।  प्रमाणित होने तक नहीं रुकना।  प्रमाणित नहीं होता है तो आपकी उपलब्धि आप तक ही है।  वह व्यक्तिवाद है।  अनुभव पूर्वक प्रमाणित होने पर आप संसार के लिए उपकारी होंगे।


प्रश्न: इस विकल्पात्मक दर्शन द्वारा प्रस्तावित सभी बिंदुओं पर मुझे विश्वास है, इसके बावजूद "जीने" की जगह में मुझे स्वयं में कमी दिखती है।  इसका क्या कारण है?

उत्तर: इसका कारण है आपका "पूर्वाभ्यास"।  जो भी हम पहले कल्पना किये हैं या अभ्यास किये हैं, उसका स्मरण ही अवरोध है।  ऐसे में मानवीयता में विश्वास होते हुए अमानवीयता में जीते हैं।  मानवीयता की अपेक्षा जीवन के अनुसार है।  अमानवीयता में जीना अभी की परंपरा है।  ऐसे सोच के देखिये।  यह स्थिति समाधान होने तक है।  यदि समाधान होता है तो वह जीने में आता ही है।

- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (अनुभव शिविर, जनवरी २०१३, अमरकंटक)

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