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Sunday, July 14, 2024

आत्मा ब्रह्म से नेष्ठ नहीं है

सहअस्तित्व स्वरूपी सत्य में न्याय और धर्म दोनों समाहित रहते हैं, इसीलिये सत्य में अनुभूत होने वाली बात आती है.  आत्मा सत्य में अनुभूत होता है, फलस्वरूप जीव-जगत सब समझ में आता है, फलस्वरूप हम प्रमाणित होने योग्य हो जाते हैं.  

आत्मा मध्यस्थ क्रिया है, इसलिए उसमे सत्य स्वीकृत होता ही है.  सत्य के अलावा आत्मा को और कुछ स्वीकृत ही नहीं होता।  

प्रश्न:  आपके कथन "आत्मा ब्रह्म से नेष्ठ नहीं है" से क्या आशय है?

उत्तर: ब्रह्म व्यापक है.  आत्मा अनुभव संपन्न होने पर ज्ञान के अर्थ में व्यापक हो ही जाता है.  

आत्मा मध्यस्थ क्रिया होने से, और सत्ता मध्यस्थ होने से - इनकी साम्यता बन गयी.  इसीलिये आत्मा सत्ता में अनुभव होता है.  अनुभव होने के फलस्वरूप परस्परता में सत्य की संप्रेषणा आत्मा में अनुभव मूलक विधि से ही होता है.  इसीलिये आत्मा प्रकृति का अंश परिगणित होते हुए, परमाणु का मध्यांश होते हुए, क्रिया होते हुए, ब्रह्म से नेष्ठ इसीलिये नहीं है क्योंकि आत्मा में अनुभव मूलक विधि से ही सत्य अभिव्यक्त होता है, सम्प्रेषित होता है, प्रकाशित होता है - फलतः प्रमाणित होता है.  

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००८, अमरकंटक

व्यवस्था के अर्थ में अस्तित्व को समझना

प्रश्न: ज्वार-भाटा को आप कैसे देखते हैं?

उत्तर: चन्द्रमा धरती का उपग्रह है.  धरती चन्द्रमा को अपने साथ बनाये रखने में जो खुशहाली व्यक्त करता है - वही ज्वार-भाटा है.  व्यवस्था के अर्थ में अस्तित्व को समझने के बाद ही यह सब स्पष्ट होता है.  इससे पहले किसी को यह स्पष्ट होने वाला नहीं है.  

प्रश्न: क्या यह गणितीय भाषा से नहीं बताया जा सकता?

उत्तर: यह जो बताया वह गुणात्मक भाषा है.  गणितीय विधि से जो निकलता है, वह निकाल लेना.  व्यवस्था को कारण-गुण-गणित के संयुक्त रूप में व्यक्त किया जाता है. 

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००८, अमरकंटक)  

Tuesday, July 9, 2024

आगे की सोच

जब प्यास लगे तब कुआँ खोद के पानी पियें, वह अच्छा है - या पहले से कुआं रहे, जब प्यास लगे उससे पानी पिएं - वह अच्छा है?  पहले से कुआं रहे, वही अच्छा है.

वैसे ही हमारे पास समझदारी रहे, उससे जब जो परिस्थिति हो उसका समाधान हमको मिलता रहे.

समझदारी हासिल करने के बाद अब तक की यात्रा में, मेरे पास समझदारी पहले से रहा, अवसर और सम्भावना बढ़ता गया - इसलिए मेरा ध्वनि बुलंद होता गया.  यदि अवसर और सम्भावना उदय नहीं होता तो मेरा ध्वनि बुलंद नहीं हो सकता था.  अवसर और सम्भावना बढ़ने से आपको भी लगता है, यह बात सब तक पहुंचना चाहिए।  यहां तक हम आये हैं, यह हमारा मूल्यांकन है.

कटघरे में रह कर हम समय को अघोरते रहे - यह ठीक नहीं है!  किसी कटघरे में आप न फंसें - ऐसा मेरा शुभकामना है.  आपके जैसे संभ्रांत लोगों से मेरी यही अपेक्षा है.  संभ्रांत से आशय है - आगे की सोच के लिए आप लोगों के पास जगह है.  आगे की सोच के लिए जिनके पास जगह नहीं है, उनको मैं रूढ़िवादी या कटघरे में रहने वाला मानता हूँ.  आज की विपदाएं आपको विदित हैं, आगे के लिए सुगम रास्ता क्या हो, इसके लिए आपके पास जिज्ञासा है - भले ही वह किसी भी प्राथमिकता में हो.  इस आधार पर आप आगे की सोच के लिए योग्य हैं, ऐसा मान करके आप लोगों के साथ मैं मंगल मैत्री से चले आ रहा हूँ.  इसमें हम सफल भी हैं.  हम केवल शुष्कवाद कर रहे हों - ऐसा भी नहीं है!

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००८, अमरकंटक)