प्रश्न: समाधि-संयम पूर्वक आपको सत्ता का स्वरूप कैसा दिखा?
उत्तर: समाधि की स्थिति में मुझे गहरे पानी में आँख खोलने पर जैसे प्रकाश दिखता है, वैसा दिखता रहा. समाधि में मुझे सत्ता ही दिखता रहा, यह संयम में स्पष्ट हो गया. संयम में पता चला कि मैं समाधि में सत्ता को ही देख रहा था. समाधि के आधार पर ही संयम में अध्ययन करना बना.
प्रश्न: समाधि में जैसा आपको दिखता रहा, हमको वैसा दिखता नहीं है. इसका क्या कारण है?
उत्तर: समाधि की स्थिति में जीवन शरीर को छोड़ा रहता है. सशरीर जब आप देखते हैं तो आँख से वह स्वरूप आपको दिखता नहीं है.
प्रश्न: अध्ययन विधि में शरीर के साथ सत्ता का स्वरूप हमको कैसा दिखेगा?
उत्तर: इन्द्रियगोचर विधि और ज्ञानगोचर विधि दोनों मानव में है. सत्ता ज्ञानगोचर वस्तु है. ज्ञानगोचर विधि से आपको सत्ता का स्वरूप समझ में आएगा. ज्ञानगोचर विधि से सत्ता का स्वरूप मुझे संयम में समझ में आया. ज्ञानगोचर विधि से ही सत्ता का स्वरूप आपको अध्ययन पूर्वक समझ में आएगा।
प्रश्न: समाधि की स्थिति को आप इन्द्रियगोचर कहेंगे या ज्ञानगोचर कहेंगे?
उत्तर: वह इन्द्रियगोचर भी नहीं है, ज्ञानगोचर भी नहीं है. समाधि एक घटना है. जैसे, हथोड़े से किसी पत्थर को हमने तोडना शुरू किया। १०० चोटों तक टूटा नहीं, १०१ वीं चोट में टूट गया. १०० चोटों में टूटने की घटना का कारण बनता रहा, १०१वीं चोट में टूटने की घटना आंकलित हो गया. वैसे ही समाधि घटना की पृष्ठभूमि साधना से बनी, समाधि घटना में आशा-विचार-इच्छा का चुप होना आंकलित हो गया. उस में कोई ज्ञान नहीं हुआ. संयम काल में समाधि का मूल्यांकन हुआ. संयम काल में सत्ता में अनंत प्रकृति डूबा-भीगा-घिरा स्वरूप में देख लिया।
प्रश्न: सत्ता ही ऊर्जा है, सत्ता ही ज्ञान है - यह निष्कर्ष कैसे निकाला?
उत्तर: भौतिक रासायनिक वस्तु में अपनी कोई ताकत नहीं है, ताकत सत्ता है. हर वस्तु क्रियाशील है, अतः ऊर्जा संपन्न है. अगर वस्तु में अपनी अलग ताकत होती तो वह सत्ता से अलग भी पाया जाता। कोई जगह ऐसी है भी नहीं, जहाँ सत्ता न हो.
ऊर्जा से बाहर वस्तु जा नहीं सकता, ऊर्जा के बिना वस्तु रह नहीं सकता. इस आधार पर कहा - वस्तु ऊर्जा संपन्न है.
ऊर्जा का प्यास वस्तु को है, वस्तु का प्यास ऊर्जा को है. इस तरह वस्तु और ऊर्जा की नित्य सामरस्यता बन गयी, जिसको हम 'सहअस्तित्व' नाम दे रहे हैं. न वस्तु सत्ता को छोड़ सकता है, न सत्ता वस्तु को छोड़ सकती है - सहअस्तित्व इसका नाम दिया है. सत्ता का प्यास वस्तु को है, क्योंकि वस्तु को क्रिया करने के लिए ऊर्जा चाहिए। वस्तु का प्यास सत्ता को है, क्योंकि सत्ता को प्रकट होने के लिए वस्तु चाहिए।
वस्तु सत्ता में समाया है, सत्ता स्थितिपूर्ण यथावत संतुष्ट है. सत्ता में कोई चाहत नहीं है. चाहत वस्तु में होता है, चाहत ऊर्जा में नहीं है. चाहत एक निश्चित दायरे में होता है. निश्चित दायरे में नहीं है तो चाहत कहाँ है? सत्ता सर्वत्र होने के आधार पर उसमे किसी इकाई विशेष का नाश करने (या उद्धार करने) का कोई स्वरूप नहीं बनता। (भौतिक रासायनिक) वस्तु कहीं भी जाए, उसको रहना सत्ता में ही है. ज्ञान भी वैसा ही है. मनुष्य ज्ञान के बिना रह नहीं सकता, भौतिक-रासायनिक (जड़) वस्तु ऊर्जा के बिना रह नहीं सकता।
जड़ प्रकृति मूल ऊर्जा के बिना रह नहीं सकता। कार्य ऊर्जा के कारण स्वरूप में मूल ऊर्जा (सत्ता) है.
मूल ऊर्जा के बिना जड़ प्रकृति कार्य कर ही नहीं सकता। उसी प्रकार चैतन्य चेतना के बिना कार्य कर ही नहीं सकता। चैतन्य प्रकृति का मानव जीव चेतना को अपना कर दुखी रहता है, दुखी करता है. मानव चेतना को अपना कर सुखी रहता है, सुखी करता है.
चैतन्यता को हर व्यक्ति अपने में जांच सकता है, उसके आधार पर जड़ में ऊर्जा सम्पन्नता को पहचानने का उसको एक स्टेप मिल जाता है.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (जुलाई २०१०, अमरकंटक)
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