हर जगह "करके समझो" के स्थान पर "समझ के करो" - चाहे उत्पादन में, या शिक्षा में, या आचरण में, या संविधान में. समझ के करने में हम हर स्थिति में अखंड समाज - सार्वभौम व्यवस्था सूत्र-व्याख्या में जी पाते हैं.
"समझ के करने" से व्यर्थ के प्रयोग करने से हम बच सकते हैं. "समझ के करने" पर हर प्रयोग सार्थक होता है.
इस तरह अच्छे ढंग से, अच्छे मन से यदि हम चलें तो उपकार कर सकते हैं. अभी तक आरामदेहिता को खोजते हुए जो चलते रहे उसमे थोड़ा परिवर्तन होगा। आरामदेहिता को खोजने की जगह उपयोगिता, सदुपयोगिता और प्रयोजनशीलता को पहचानने की जगह में हम आ जाते हैं. इसके लिए हमको मूल्यमूलक और लक्ष्यमूलक विधि से काम करना होगा। रूचिमूलक विधि (आरामदेहिता को खोजना) से आदमी अब तक चला है - उससे कोई उपकार हुआ नहीं। अब (समझ के) लक्ष्यमूलक और मूल्यमूलक विधि से प्रयोग करने की आवश्यकता है.
- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (अक्टूबर २०१०, भोपाल )
"समझ के करने" से व्यर्थ के प्रयोग करने से हम बच सकते हैं. "समझ के करने" पर हर प्रयोग सार्थक होता है.
इस तरह अच्छे ढंग से, अच्छे मन से यदि हम चलें तो उपकार कर सकते हैं. अभी तक आरामदेहिता को खोजते हुए जो चलते रहे उसमे थोड़ा परिवर्तन होगा। आरामदेहिता को खोजने की जगह उपयोगिता, सदुपयोगिता और प्रयोजनशीलता को पहचानने की जगह में हम आ जाते हैं. इसके लिए हमको मूल्यमूलक और लक्ष्यमूलक विधि से काम करना होगा। रूचिमूलक विधि (आरामदेहिता को खोजना) से आदमी अब तक चला है - उससे कोई उपकार हुआ नहीं। अब (समझ के) लक्ष्यमूलक और मूल्यमूलक विधि से प्रयोग करने की आवश्यकता है.
- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (अक्टूबर २०१०, भोपाल )
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