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Friday, June 16, 2017

अध्ययन के लिए गति

प्रश्न: हम अपने अध्ययन को गति देने के लिए क्या करें?

उत्तर: अध्ययन में रुचि पैदा हो जाए तो अध्ययन के लिए गति बनेगी।  हमारी निष्ठा हमारी इच्छा या रुचि या प्राथमिकता पर निर्भर है.  जिस बात को हम प्राथमिक मानते हैं उसमें हमारी पूरी निष्ठा रहती है.  इच्छा के तीन स्तर हैं - कारण इच्छा, सूक्ष्म इच्छा और तीव्र इच्छा।  इन तीनों स्तरों में से किसी स्तर पर हमारी अध्ययन करने की इच्छा भी है.  जो बात तीव्र इच्छा के स्तर पर आ जाती है, फिर उसको करना ही होता है - और कोई रास्ता नहीं है.  अध्ययन के लिए तीव्र इच्छा बनने के लिए अपनी 'उपयोगिता' को पहचानने की आवश्यकता है.  हम जब स्वयं "उपयोगी" हो जाते हैं तो हमारा "उपकार" करना बनता ही है.  हम स्वयं उपयोगी नहीं हैं तो हम उपकार कैसे करेंगे?

अभी आपके सामने पूरा वांग्मय है और इस वांग्मय को प्रस्तुत करने वाला जीता-जागता आदमी मौजूद है - इस नसीब को ज्यादा से ज्यादा सदुपयोग किया जाए.  अपनी जिज्ञासा को स्पष्ट पहचाना जाए.  जो बात आपको स्पष्ट नहीं हुआ है, उसको मुझ से समझ लिया जाए.

मैं जो जीता हूँ, उसमे कोई समस्या नहीं है.  मेरे जीने के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े भाग में समाधान ही है. मेरी सभी करतूत से समाधान ही मिलता है, समस्या मिलता ही नहीं है.  सभी मोड़ मुद्दे पर समाधान मिलता है तो सुखी होने के अलावा और क्या होगा?  उसी तरह सबको जीना है.

प्रश्न: कैसे पता करें कि हमे इस प्रस्ताव को लेकर क्या स्पष्ट नहीं है?

उत्तर: मानव के जीने के चार आयाम हैं - (१) आचरण, (२) संविधान (विधि), (३) शिक्षा, (४) व्यवस्था।   जो बात इन चारों आयामों में समाधान प्रस्तुत करे उसको सर्वमानव के लिए सही माना जाए.  इन चारों आयामों में इस प्रस्ताव के अनुसार समाधान का सूत्र-व्याख्या हुआ या नहीं, इसको आजमाना। आजमाने का मतलब है - हम दूसरे को समझाने में सफल हुए या नहीं?  यही स्वयं को आजमाना है.  इस आजमाने से पता लगेगा क्या स्पष्ट है, क्या स्पष्ट नहीं है.

प्रश्न:  अपनी निष्ठा का कैसे मूल्याँकन करें?

उत्तर:  इस प्रस्ताव पर सोच-विचार के बाद जो योजना बनती है, उसको क्रियान्वयन करने के लिए हम क्या किये, कितना किये, यही कर रहे हैं या और कुछ भी कर रहे हैं - इसके आधार पर अपनी निष्ठा का मूल्यांकन है.

प्रश्न:  "अनुभव के लिए तीव्र इच्छा" का क्या मतलब है?

उत्तर: इसका मतलब है - अनुभव मूलक विधि से ही हम पार पायेंगे, दूसरा कोई रास्ता नहीं है.  अनुभवगामी पद्दति में तर्क कुछ दूर तक उपयोगी है, पर तर्क बोध और अनुभव तक पहुंचेगा - ऐसा नहीं है.  बोध और अनुभव अपने में होने वाला निर्धारण ही है.

- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (अक्टूबर २०१०, भोपाल)

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