"मानव शुभ आशा से संपन्न है ही, यही अभ्यास पूर्वक क्रम से कामना, इच्छा, संकल्प एवं अनुभूति सुलभ होता है.
शुभकामना का उदय मानवीयता में ही प्रत्यक्ष होता है, यही प्रेमानुभूति के लिए सर्वोत्तम साधना है.
शुभकामना क्रम से इच्छा में, इच्छा तीव्र-इच्छा में, एवं संकल्प में तथा भासाभास, प्रतीति एवं अवधारणा में स्थापित होता है. फलतः प्रेममयता का अनुभव होता है.
प्रेममयता ही व्यवहार में मंगलमयता एवं अनन्यता को प्रकट करती है, जो अखंड समाज का आधार है. "
- श्री ए नागराज
शुभकामना का उदय मानवीयता में ही प्रत्यक्ष होता है, यही प्रेमानुभूति के लिए सर्वोत्तम साधना है.
शुभकामना क्रम से इच्छा में, इच्छा तीव्र-इच्छा में, एवं संकल्प में तथा भासाभास, प्रतीति एवं अवधारणा में स्थापित होता है. फलतः प्रेममयता का अनुभव होता है.
प्रेममयता ही व्यवहार में मंगलमयता एवं अनन्यता को प्रकट करती है, जो अखंड समाज का आधार है. "
- श्री ए नागराज
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