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Monday, April 6, 2015

देश-काल की सीमा

प्रश्न: आप कहते हैं - "चैतन्य जड़ से बना नहीं है, विकसित हुआ है".   आपने यह भी कहा है - "जड़ परमाणु चैतन्य पद में संक्रमित हो जाता है".   लेकिन आप यह भी कहते हैं - "जड़ और चैतन्य दोनों हमेशा-हमेशा से थे, हमेशा रहेंगे".  इसको समझाइये।

उत्तर: मानव व्यवहार दर्शन में जड़ और चैतन्य की चर्चा करते हुए परमाणु में विकास के नाम से अवधारणाओं को प्रस्तुत किया है.  उसमें इस बात को स्पष्ट किया है कि विकास-क्रम और विकास मानव को समझ में आता है.  विकसित परमाणु के अर्थ में जीवन क्रियाकलाप प्रमाणित है.   विकासक्रम में भौतिक-रासायनिक क्रियाकलाप प्रमाणित है.  जड़ कब और कैसे चैतन्य होता है? - इस प्रश्न का उत्तर देश और काल की सीमा में आता नहीं है.  हम जो "है" उसका अध्ययन करते हैं.  विकास-क्रम है.  विकास है.  विकास-क्रम और विकास को जोड़ कर देखने से पता लगता है, और हम कह सकते हैं कि जड़ ही चैतन्य हुआ है.  गठन-पूर्णता की यह घटना विकास पूर्वक ही घटित रहना पाया जाता है. 

यह सुनकर विकास को घटित कराने के लिए मानव में प्रवृत्ति होती ही है.  इसके लिए पुनः प्रयोग विधि ही सामने आती है.  प्रयोग विधि देश-काल की सीमा में होती है.  प्रयोग के लिए आपके पास जो साधन हैं, वे यंत्र ही हैं.  जो जिससे बना होता है, वह उससे अधिक होता नहीं है.  मानव जितने भी यंत्र बना पाया है, वे भौतिक संसार से ही बने हैं.  प्राण-संसार के साथ जो प्रयोग हुए हैं, उनका बीज रूप वनस्पति संसार से ही प्राप्त रहना देखा गया है. प्रयोग विधि से विकास (गठनपूर्णता) को सिद्ध नहीं किया जा सकता। 

दूसरे, इस सच्चाई को भी देखा गया है कि अस्तित्व की व्याख्या देश-काल की सीमाओं में हो नहीं पाती।  अस्तित्व की व्याख्या सर्व-देश और सर्व-काल के आधार पर ही है.  देश और काल के आधार पर घटना को पहचानने के क्रम में किसी वस्तु का सच्चाई समझ नहीं आती.  सर्व-देश सर्व-काल के आधार पर सम्पूर्ण वस्तुओं का सच्चाई समझ में आता है.  इस विधि से हम इस निष्कर्ष में आते हैं कि विकास, विकास-क्रम से संक्रमण पूर्वक जुड़ा हुआ है.  यह कब जुड़ा?  यह प्रश्न देश-काल बाधित है.  अतएव इस मुद्दे को अस्तित्व सहज नित्य वर्तमान परक सत्य के रूप में स्वीकारना ठीक होगा। 

- श्री ए नागराज की डायरी से, एक पत्र के उत्तर देने के क्रम में (१५ मई २००१, अमरकंटक)

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