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Tuesday, July 22, 2014

अस्तित्व मूलक मानव केंद्रित चिंतन

अस्तित्व नित्य वर्तमान है - चाहे आप उसे मानें या न मानें, जानें या न जानें।  वर्तमान में जो प्रमाणित होता है, वह पहले से था ही!  जो था नहीं, वह होता नहीं! 

प्रश्न: तो आपके "अस्तित्व मूलक मानव केंद्रित चिंतन" को प्रस्तुत करने से क्या हुआ?

उत्तर: अस्तित्व तो था ही, मानव भी था ही - सीधे-सीधे अस्तित्व से मानव के जीने के सूत्रों को, सुख को अनुभव करने के सूत्रों को, समाधानित होने के सूत्रों को, समृद्ध होने के सूत्रों को, वर्तमान में विश्वास करने के सूत्रों को, सहअस्तित्व में जीने को प्रमाणित करने के सूत्रों को मानव द्वारा प्रकाशित किया गया है.   यह प्रकाशन मानव द्वारा ही संभव है.  जीव-संसार, वनस्पति-संसार, खनिज-संसार इस प्रकाशन को करेगा नहीं।  वर्तमान में प्रमाणित होने के धरातल से इस बात का प्रकाशन किया गया है.  यह केवल बातें नहीं हैं! 

अस्तित्व में मानव एक इकाई है.  मानव का अध्ययन मैंने किया है. 

 अस्तित्व मूलक मानव केंद्रित चिंतन से "मध्यस्थ दर्शन - सहअस्तित्ववाद" निष्पन्न हुआ.  हर मानव इसके अध्ययन पूर्वक समाधानित होगा और अनुभव मूलक विधि से समाधान, समृद्धि, अभय और सहअस्तित्व को प्रमाणित करेगा।  समाधान, समृद्धि, अभय और सह-अस्तित्व मानव जाति की अपेक्षा है.  इस अपेक्षा को सार्थक बनाना अस्तित्व मूलक मानव केंद्रित चिंतन द्वारा ही संभव है.  मानव इस समझदारी को उपार्जित करने के फलस्वरूप ईमानदार, जिम्मेदार और भागीदार हो पाता है.  भागीदारी का फलन ही है - समाधान, समृद्धि, अभय और सह-अस्तित्व। 

एक ध्रुव अस्तित्व है, दूसरा ध्रुव जागृति है.  जागृति का स्वरूप है - समाधान, समृद्धि, अभय, सह-अस्तित्व।

- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (सितम्बर १९९९, आंवरी आश्रम)

 

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