अध्ययन संयोग से होता है। इसमें अभिभावक, अध्यापक, और विद्यार्थी तीनो शामिल हैं। विद्यार्थी वह है - जो जिज्ञासु हो। अभिभावक से आशय है - विद्यार्थी के माता-पिता आदि। अध्यापक वह है - जो अनुभव-संपन्न समझदार व्यक्ति हो।
अध्ययन-क्रम में विद्यार्थी अपनी जिज्ञासा को व्यक्त करता है, जिसका समाधान अध्यापक प्रस्तुत करता है और जिज्ञासा को शांत करता है।
अध्यापक के अनुभव की रोशनी में विद्यार्थी अध्ययन करता है। अध्यापक के अनुभव की रोशनी विद्यार्थी के पूरे जीवन पर प्रभाव डालती है - जिससे विद्यार्थी की बुद्धि और आत्मा बोध और अनुभव करने के लिए तैयार हो जाती है। जैसे-जैसे विद्यार्थी की जिज्ञासा तृप्त होती जाती है उसकी कल्पनाशीलता वैसे-वैसे सह-अस्तित्व में तदाकार होती जाती है। एक बिंदु पर कल्पनाशीलता पूरी तरह तदाकार हो जाती है। वह बिंदु है - अस्तित्व को सह-अस्तित्व रूप में अनुभव करना। अनुभव संपन्न होने पर विद्यार्थी स्वयं को प्रमाणित करने योग्य हो जाता है। यही अध्ययन की सफलता है।
- बाबा श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (मई २०११, अमरकंटक)
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