दस व्यक्तियों के समझदार परिवार में समाधान-समृद्धि का वैभव होता है। ऐसे दस समझदार परिवार एक-एक व्यक्ति को अपने में से निर्वाचित करते हैं, जो परिवार-समूह सभा को गठित करता है। ऐसे दसों व्यक्तियों का अधिकार समान होगा, उसका कोई एक मुखिया होगा ऐसा नहीं है। इन दसों परिवारों के जीने के पाँचों आयामों – शिक्षा-संस्कार कार्य, न्याय-सुरक्षा कार्य, स्वास्थ्य-संयम कार्य, उत्पादन कार्य, विनिमय-कोष कार्य – में जब भी कोई काम आया उसको पूरा करना, इनका काम रहेगा। जैसे सभी दस परिवार शिक्षा-संस्कार में पारंगत हैं या नहीं, उसमे जो कमी है उसको पूरा करना। सभी दस परिवार न्याय पूर्वक जी पा रहे हैं, यदि नहीं जी पा रहे हैं तो उसको पूरा करना। सभी दस परिवार उत्पादन कार्य में प्रवीण हैं या नहीं, आवश्यक उत्पादन कर पा रहे हैं या नहीं – इसका परिशीलन करना, और उसकी कमियों को पूरा करना। सभी स्वास्थ्य को लेकर स्वायत्त हैं या नहीं इसका परिशीलन करना और उसकी कमियों को पूरा करना। व्यवस्था के अर्थ में ही कमियों का आंकलन होता है, और उसको पूरा करने के लिए प्रयास होता है।
इस तरह एक परिवार से एक परिवार-समूह तक पहुँचते हैं। ऐसे दस परिवार-समूह मिल कर एक ग्राम परिवार-सभा को तैयार करते हैं। ग्राम-परिवार सभा में भी यही पाँचों आयाम – शिक्षा-संस्कार, न्याय-सुरक्षा, स्वास्थ्य-संयम, उत्पादन, और विनिमय - काम करते हैं। इन सौ परिवारों के बीच ही विनिमय-कोष कार्य पूरा होता है, संतुलित होता है।
इसके आगे ग्राम-समूह परिवार-सभा में दस ग्राम परिवार-सभाओं से एक-एक व्यक्ति निर्वाचित हो कर पहुँचते हैं। इस प्रकार उत्पादन के दस गावों तक पहुँचने की व्यवस्था बनती है। इस तरह हज़ार परिवारों के बीच संतुलन की व्यवस्था बनती है।
इसके आगे दस ग्राम-समूह सभाओं से एक-एक व्यक्ति निर्वाचित हो कर मंडल परिवार-सभा तक पहुँचते हैं। इस तरह दस-हज़ार परिवारों के बीच पाँचों आयामों में संतुलन की व्यवस्था बनती है।
इसके आगे दस मंडल-सभाओं से एक-एक व्यक्ति निर्वाचित हो कर मंडल-समूह परिवार-सभा तक पहुँचते हैं। दस मंडल-समूह सभा से एक-एक व्यक्ति निर्वाचित हो कर मुख्य-राज्य परिवार-सभा बनता है। इसी विधि से आगे प्रधान-राज्य परिवार सभा और विश्व परिवार-सभा के होने का प्रावधान है। इस तरह “दस सोपानीय परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था” का स्वरूप निकलता है – जिससे विश्व स्तर तक शिक्षा-संस्कार, न्याय-सुरक्षा, स्वास्थ्य-संयम, उत्पादन और विनिमय-कोष कार्यों को व्यवस्था के अर्थ में संपादित किया जाता है, उनमे कमियों को पूरा किया जाता है। व्यवस्था का काम यह है, न कि आदमी को फांसी पर लटकाना, बन्दूक दिखा कर बस में रखना। शक्ति केंद्रित शासन मानव को स्वीकार नहीं है। व्यवस्था ही मानव को स्वीकार होती है. सार्वभौम-व्यवस्था के लिए सह-अस्तित्ववादी ज्ञान, विवेक, विज्ञान में पारंगत होने की आवश्यकता बनती है। पारंगत होने के लिए शिक्षा-विधि ही है। उसके लिए हम छत्तीसगढ़ में कुछ प्रयास कर रहे हैं, आगे चल कर सभी जगह पहुंचेंगे।
- बाबा श्री ए नागराज के जीवन-विद्या राष्ट्रीय सम्मलेन २०१० में उदबोधन पर आधारित
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