ANNOUNCEMENTS



Monday, May 2, 2011

प्रचलित-शिक्षा का विकल्प

अभी की प्रचलित-शिक्षा कामोंमादी, भोगोंमादी, और लाभोंमादी है। जबकि हर अभिभावक - चाहे डाकू हों, दरिद्र हों, समर्थ हों, असमर्थ हों - चाहते हैं उनके बच्चे नैतिकता पूर्ण बने, चरित्रवान बनें। आप स्वयं सोचिये – इन तीनो उन्मादों को पाते हुए क्या बच्चे नैतिक बन सकते हैं, चरित्रवान बन सकते हैं? इस ढंग से हम अभी तक क्या किये, किस बात के लिए भागीदारी किये – इसका मूल्याँकन होने लगता है। इस मूल्याँकन के होने के बाद हम विकल्पात्मक स्वरूप में जीने के लिए तैयार होते हैं। विकल्पात्मक स्वरूप है – सह-अस्तित्व में जीना. विकल्पात्मक शिक्षा के स्वरूप के बारे में हम आगे चर्चा करेंगे।

सह-अस्तित्व में स्वयम जीने के स्वरूप को लेकर विकल्पात्मक-शिक्षा की शुरुआत करते हैं। सह-अस्तित्व में स्वयं जीने के लिए जब पारंगत हो जाते हैं, तो उसके सत्यापन को हम इस विकल्पात्मक-शिक्षा की पूर्णता मानते हैं। इसके उपरान्त समाधान-समृद्धि पूर्वक जीने, अन्य लोगों की सहायता करने, और उपकार करने की शुरुआत होती है। आगे पीढ़ी में पिछली पीढ़ी से और अच्छा करने तथा अच्छा प्रस्तुत होने की कल्पना रहता ही है। अभी की अपराध-परंपरा में भी इस को देखा जा सकता है। मानव ने अपराध की शुरुआत जंगल को विनाश करने और हिंसक पशुओं का वध करने के रूप में की। उनकी संतान और ज्यादा विनाश करने, और ज्यादा वध करने की ओर गयी। यह चलते-चलते लाभोन्माद, भोगोन्माद, कामोन्माद तक पहुँच गया। अभी प्रचलित व्यापार-शिक्षा में लाभोन्माद, भोगोन्माद, कामोन्माद ही मिलता है। इसके अलावा दूसरा कुछ उसमे पा ही नहीं सकते। इसके अलावा उस शिक्षा में कोई ध्वनि ही नहीं है, सूत्र ही नहीं है, न व्याख्या है। यहाँ बैठे कुछ लोग नौकरी करते हुए भी हैं, व्यापार करते हुए भी हैं। वे सभी सोच सकते हैं, ऐसा ही है या नहीं? यदि मैं जो कह रहा हूँ वास्तविकता उससे भिन्न कुछ है तो उसको आप मुझे सुझाव के रूप में दे सकते हैं, आग्रह के रूप में दे सकते हैं – कैसे भी दीजिए, वह सब स्वागतीय है।

अभी मानव बहु-रुपिये जैसा जीता है. समझदारी पूर्वक मानव एक निश्चित आचरण (मानवीयता पूर्ण आचरण) के साथ जीता है। क्या इस बात से किसी का विरोध है, असहमति है? यह जीव-चेतना और मानव-चेतना का विश्लेषण है। इस विश्लेषण के आधार पर मनुष्य पुनर्विचार करने का अधिकार प्राप्त करता है। पुनर्विचार कि – अपराध-मुक्ति कैसे हो? गलतियों से मुक्ति कैसे हो? भ्रम से मुक्ति कैसे हो? दरिद्रता से मुक्ति कैसे हो? पुनर्विचार के लिए सुझाव है – सह-अस्तित्व-वादी विधि से इन सभी मुद्दों का समाधान प्राप्त कर सकते हैं। जिससे अपराध-मुक्त हो सकते हैं, गलतियों से मुक्त हो सकते हैं, भ्रम से मुक्त हो सकते हैं, दरिद्रता से मुक्त हो सकते हैं।

- बाबा श्री ए नागराज के जीवन-विद्या राष्ट्रीय सम्मलेन २०१० में उदबोधन पर आधारित

No comments: