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Monday, April 26, 2010

पुनर्विचार की आवश्यकता

मानव जाति ने व्यापार और नौकरी में विश्वास को ढूँढने का प्रयास किया - जबकि व्यापार और नौकरी जिम्मेदारी लेने से मुकरा हुआ है। नौकरी भी व्यापार के लिए ही है। व्यापार और नौकरी द्वारा सुविधा-संग्रह की तलाश है। इससे पहले मानव-जाति में कुछ लोग भक्ति-विरक्ति की तलाश में थे, और उनका सम्मान करते हुए बाकी लोग थे। अब भक्ति-विरक्ति छूट गया - और अब सभी के सभी सुविधा-संग्रह के दरवाजे पर खड़े हैं। नौकरी और व्यापार में विश्वास को ढूँढने का प्रयास कर रहे हैं। इन प्रयासों के चलते ही धरती बीमार हो गयी, प्रदूषण छा गया। अब पुनर्विचार की आवश्यकता है।

पुनर्विचार का मूल आधार बना - धरती का बीमार होना। इस धरती पर इतने समुदाय हैं, और किसी भी समुदाय के पास सर्व-शुभ के लिए सूत्र-व्याख्या नहीं है। सबके लिए शुभ जिससे हो ऐसी सूत्र-व्याख्या चाहिए या नहीं चाहिए? - इस संवाद के उत्तर में सबका यही उत्तर आता है - चाहिए! इस धरती पर रहने के लिए धरती को स्वस्थ रखना है, या नहीं रखना है? - इसका उत्तर भी सबका यही आता है - रखना है! सर्व-मानव के साथ जुड़ा यह प्रश्नोत्तर है। सर्व-मानव के लिए "आगे की सोच" के लिए विकल्प की आवश्यकता है।

पुनर्विचार के लिए मूल मुद्दा है - सर्व-शुभ के सूत्र को पहचानना। दूसरे - अपराध-मुक्ति के सूत्र को पहचानना।

सर्व-शुभ के मूल में ज्ञान-विवेक-विज्ञानं को तय करने की आवश्यकता है। इसका शिक्षा-विधा में, विचार-विधा में, व्यव्हार-विधा में, और व्यवस्था-विधा में क्या स्वरूप होगा - इसको समझने के बाद उसको संप्रेषित करने की आवश्यकता है। इतना सब यदि हम कर पाते हैं, और उसको संप्रेषित कर पाते हैं - तभी वह विकल्प होगा!

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २००६, अमरकंटक)

2 comments:

Jitender Narula said...

Rakesh Ji,

1. I could not understanding the
meaning of "Samprekshit".

2. Can you pl give me an example
of what do you mean by
saying "vichar vidha mein
swarup"

Regards

Jitender Narula

Rakesh Gupta said...

Hi Jitender,

(1) "Sampreshit" means to convey the meaning. The line here is saying that we need to ascertain what is knowledge, what is wisdom, and what is science. and then convey this meaning in various dimensions of human-living - such as education, thinking, behaviour, and systems. If we are able to do all this, only then we could call this proposal as "alternative".

(2) There are patterns in our thinking. The patterns of our thinking are determined by our beliefs. Now with this understanding the patterns of thinking become aligned with justice, dharm, and truth. This means our outlook becomes integral or holistic, instead of being narrow or selfish.

regards,
Rakesh.