अभी कुकर्मों के लिए पारितोष और पुरस्कार दिया जाता है. मानव चेतना विधि से उपकार का पुरस्कार और पारितोष होता है. उपकार का प्रतिफल नहीं होता. प्रतिफल श्रम नियोजन का ही होता है.
ज्ञान-विवेक-विज्ञान सम्बन्धी बातों का कामना या सम्मान ही किया जा सकता है. कामना के साथ हम जो खुशहाली से देते हैं - वह पारितोष है. सम्मान योग्य कार्य होने पर हम जो देते हैं - वह पुरस्कार है. जैसे बच्चों को शुभकामना के साथ जो देते हैं - वह पारितोष है. फिर जब प्रमाण होने पर उसका सम्मान किया - तो वह पुरस्कार है.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)
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