मनुष्य जब जागृति की ओर उन्मुख होता है, तो वह श्राप, ताप, और पाप तीनो से मुक्त हो जाता है। जागृति की ओर उन्मुख होना = मानव लक्ष्य (समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व) की ओर कदम बढ़ाना। हमारा पूर्वाभ्यास या आदतें ही ताप है. ताप मतलब जल जाना. हमारे पूर्वाभ्यास से ही हम तप्त हैं. पाप वह है जो हम अव्यवस्था की ओर किये रहते हैं. अपराध करने के लिए जितने भी कामनाएं हैं - वे श्राप हैं. कितने लोग इस तरह श्राप, ताप, पाप से ग्रस्त हैं - आप ही गिन लो!
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित
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