अभी हर व्यक्ति अपने स्वरूप को भुलावा देकर जी रहा है. वैसे जी नहीं पाता है, इसीलिये ऊटपटांग होता है.
क्या अपने को पूरा भुला कर कोई आदमी जी पायेगा? तुमको क्या लगता है?
नहीं जी पायेगा. अपने को पूरा भुला देने की तो कल्पना भी नहीं होती.
इसीलिये भ्रमित हो कर जीता है, यह भाषा दिया. भ्रमवश मानव सभी गलती करने के लिए उद्द्यत हुआ. स्वयं के साथ अधिमूल्यन-अवमूल्यन करेगा तो संसार के साथ भी करेगा.
इसीलिये यहाँ पहली बात है - मानव का अध्ययन. मानव जीवन और शरीर के संयुक्त स्वरूप में है. मानव लक्ष्य पूरा होने पर जीवन मूल्य प्रमाणित होता है. मानव लक्ष्य की पहचान अभी तक की जानकारी में नहीं था. सुख, शांति, संतोष, आनंद की चर्चा विगत में भी है. मानव लक्ष्य समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व है - यह अनुसन्धान है. यह विगत की सूचना नहीं है. मानव लक्ष्य के बारे में चर्चा नहीं रही. अभी तक स्वर ही नहीं निकला. न भौतिकवाद में न आदर्शवाद में. अथा से इति तक.
-श्रद्धेय ए नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००७, अमरकंटक)
क्या अपने को पूरा भुला कर कोई आदमी जी पायेगा? तुमको क्या लगता है?
नहीं जी पायेगा. अपने को पूरा भुला देने की तो कल्पना भी नहीं होती.
इसीलिये भ्रमित हो कर जीता है, यह भाषा दिया. भ्रमवश मानव सभी गलती करने के लिए उद्द्यत हुआ. स्वयं के साथ अधिमूल्यन-अवमूल्यन करेगा तो संसार के साथ भी करेगा.
इसीलिये यहाँ पहली बात है - मानव का अध्ययन. मानव जीवन और शरीर के संयुक्त स्वरूप में है. मानव लक्ष्य पूरा होने पर जीवन मूल्य प्रमाणित होता है. मानव लक्ष्य की पहचान अभी तक की जानकारी में नहीं था. सुख, शांति, संतोष, आनंद की चर्चा विगत में भी है. मानव लक्ष्य समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व है - यह अनुसन्धान है. यह विगत की सूचना नहीं है. मानव लक्ष्य के बारे में चर्चा नहीं रही. अभी तक स्वर ही नहीं निकला. न भौतिकवाद में न आदर्शवाद में. अथा से इति तक.
-श्रद्धेय ए नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००७, अमरकंटक)
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