हम जब अपने समझे होने की घोषणा कर देते हैं उसके बाद हम सबके लिए शोध की वस्तु हो जाते हैं. आप मेरे पास इसीलिये आये हो क्योंकि मैं घोषणा किया हूँ कि सभी समस्याओं का समाधान मेरे पास है. हर बात का आप परीक्षण करते हो और वो आपको करना भी चाहिए - ऐसा मेरा स्वीकृति है. इस परीक्षण को करने पर आगे यह आपका स्वत्व हो सकता है, यह मेरी शुभकामना है. आप यदि सही ढंग से जांचते हो, शोध करते हो तो यह पूरा प्रस्तुति आपका स्वत्व हो सकता है. इस आधार पर आपका और हमारा एक resonance बना हुआ है - जो संगीत है, अपेक्षा है, सम्भावना है और उत्साह है. इसमें कहीं भी विश्रंखलता होती है तो उत्साह भंग होता है. ऐसा भी हमारे बीच कभी-कभी हुआ है. इसमें मैंने निर्णय लिया कि आपका उत्साह भंग करना मेरा काम नहीं है, आपका उत्साह वर्धन करना मेरा काम है. आप उसको स्वागत करने योग्य हुए, इस आधार पर हम आगे काम कर रहे हैं.
जब मैंने अपने समझे होने की घोषणा के साथ शुरू किया था तब एक भी व्यक्ति समझने को तैयार नहीं था. उस समय मेरे अन्तःकरण में उदय हुआ - "आदमी समझता है, मैं समझा नहीं पा रहा हूँ." इससे अनेक प्रकार से समझाने की विधि आ गयी. समझ वही है, समझाने के तरीके अनेक हैं - हर तरीके से उसी बिंदु पर मैं ले आता हूँ. कोई कहीं से भी हो उसको अपनी बात संप्रेषित करना मुझसे बन गया. उससे बहुत लाभ हुआ. संसार में किसी को ऐसा न माना जाए कि यह समझ नहीं सकता, यह सुधर नहीं सकता. कोई हमारे कितने भी विरोध में गया हो, यह मानना कि कल इनको यह समझना ही पड़ेगा. उसमे अपना कार्यक्रम बना रहता है. यदि हम मान लेते हैं कि सामने वाला समझ नहीं सकता तो हमारा कार्यक्रम बंद हो जाता है.
- श्रद्धेय श्री ए नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००७, अमरकंटक)
जब मैंने अपने समझे होने की घोषणा के साथ शुरू किया था तब एक भी व्यक्ति समझने को तैयार नहीं था. उस समय मेरे अन्तःकरण में उदय हुआ - "आदमी समझता है, मैं समझा नहीं पा रहा हूँ." इससे अनेक प्रकार से समझाने की विधि आ गयी. समझ वही है, समझाने के तरीके अनेक हैं - हर तरीके से उसी बिंदु पर मैं ले आता हूँ. कोई कहीं से भी हो उसको अपनी बात संप्रेषित करना मुझसे बन गया. उससे बहुत लाभ हुआ. संसार में किसी को ऐसा न माना जाए कि यह समझ नहीं सकता, यह सुधर नहीं सकता. कोई हमारे कितने भी विरोध में गया हो, यह मानना कि कल इनको यह समझना ही पड़ेगा. उसमे अपना कार्यक्रम बना रहता है. यदि हम मान लेते हैं कि सामने वाला समझ नहीं सकता तो हमारा कार्यक्रम बंद हो जाता है.
- श्रद्धेय श्री ए नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००७, अमरकंटक)
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