"आचरण ही अपने में पूरी बात है" - ऐसा बता कर सही जीने का मॉडल बनेगा नहीं.
विगत में (आदर्शवाद में) कहा - "आचरण पहले, विचार बाद में". उस विधि से वे अनुकरणीय हो नहीं पाए. जबकि विगत में अच्छे लोग नहीं हुए, ऐसा कहा नहीं जा सकता.
यहाँ मध्यस्थ दर्शन में कह रहे हैं - अध्ययन से आचरण की प्रवृत्ति बनती है. अध्ययन आचरण के लिए प्रथम सीढ़ी है. अध्ययन के बिना आचरण को अंतिम बात मान लिया तो वो गड़बड़ हो गया.
प्रश्न: आदर्शवादी विधि में आचरण पहले बताने का क्या स्वरूप रहा?
उत्तर: निषेध बता कर विधि को इंगित करना - यह तरीका रहा. जैसे - दूसरों को पीड़ा नहीं पहुँचाओ, चोरी मत करो, आदि. सही आचरण क्या है - उसके लिए अध्ययन कहाँ दिया? वह तो रिक्त पड़ा है.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००८, अमरकंटक)
No comments:
Post a Comment