परिवेशीय गति को वर्तुलात्मक गति कहा है. जैसे - सौर मंडल में धरती का घूमना हो या परमाणु में परमाणु अंशों का घूमना.
इकाई अपने में एक मात्रा है. ऊर्जा सम्पन्नता उसमे रहता ही है, जिससे हर परमाणु उसमे क्रियाशील रहते हैं. ऐसे सारे परमाणुओं के साथ में उस इकाई में कम्पनात्मक गति प्रकट हो जाती है. कम्पनात्मक गति सभी ओर हिल-डुल, कंपकपी के रूप में होती है. कम्पनात्मक गति इकाई का वातावरण बनाती है. इकाइयों के बीच अच्छी निश्चित दूरी तय करने का आधार कम्पनात्मक गति है. एक ग्रह-गोल व दूसरे ग्रह-गोल के बीच, एक परमाणु व दूसरे परमाणु के बीच निश्चित अच्छी दूरी कम्पनात्मक गति के आधार पर होती है.
प्रश्न: आपने लिखा है - "गठनपूर्ण परमाणु में कम्पनात्मक गति वर्तुलात्मक गति से अधिक हो जाती है." इसका क्या आशय है?
उत्तर: परमाणु में जब तक वर्तुलात्मक गति कम्पनात्मक गति से अधिक रहता है तब तक जड़ परमाणु है. जड़ परमाणु भौतिक या रासायनिक क्रिया में भागीदारी करता हुआ हो सकता है. जड़ परमाणु भौतिक क्रिया में सहवास विधि से साथ-साथ रहते हैं, रासायनिक क्रिया में यौगिक विधि से साथ-साथ रहते हैं. रासायनिक क्रिया जीवन क्रिया से सेतु जैसा काम करता है. जीव शरीर और मानव शरीर रासायनिक क्रिया ही है. शरीर के बिना जीवन क्रिया के व्यक्त होने का प्रश्न ही नहीं है.
गठनपूर्ण होते ही परमाणु अणुबंधन और भारबंधन से मुक्त हो गया और उसी मुहूर्त (समय) से आशा-बंधन युक्त हो गया. अपने कार्य गतिपथ को आशानुरूप तैयार कर लिया. जीवन का यह कार्य गतिपथ अपने आप में एक आकार होता है. उस आकार का शरीर रचना उपलब्ध रहता है. उस शरीर को वह चलाता है. कम्पनात्मक गतिवश ही जीवन अपने कार्यगति पथ को तैयार कर पाता है. जीवन में कम्पनात्मक गति मनोगति के बराबर होता है.
जीवन में वर्तुलात्मक गति उसकी कार्य सीमा है. कम्पनात्मक गति उस कार्य सीमा से अधिक है. तभी वह अपने पुन्जाकार को तैयार किया. इस तरह कम्पनात्मक गति में वर्तुलात्मक गति नियंत्रित हो गयी. यही कम्पनात्मक गति आगे चल के आशा, विचार व इच्छा बंधन मुक्ति पूर्वक अनुभव तक का आधार बनना होता है.
प्रश्न: "चैतन्य क्रिया में कम्पनात्मक गति ही संचेतना एवं वर्तुलात्मक गति ही यांत्रिकता है." - आपके इस कथन का क्या आशय है?
उत्तर: वर्तुलात्मक गति बार बार दोहराने के रूप में होता है, उसको "यांत्रिकता" मैंने नाम दिया. जैसे - जीवन का शरीर को पुन्जाकार बनाते हुए जीवंत बनाना यांत्रिकता है. शरीर के साथ जीवन यांत्रिकता को व्यक्त करता है. जीवन तृप्ति यांत्रिकता में नहीं है. जीवन तृप्ति ज्ञान में है. ज्ञान मानव परम्परा में कम्पनात्मक गति से परावर्तित होता है. इसमें द्रव्य कुछ आता जाता नहीं है. ज्ञान स्पष्ट होना, नहीं होना - यही रहता है. ज्ञान स्वरूप में हम दूर दूर तक पहुँचते हैं, यांत्रिक स्वरूप में शरीर तक ही रहते हैं.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (मई २००७, अमरकंटक)