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Wednesday, October 31, 2018

पहले मानव का हैसियत को पूरा प्रमाणित करो, फिर जीवन का हैसियत भी समझ में आएगा.


पहले मानव का हैसियत को पूरा प्रमाणित करो, फिर जीवन का हैसियत भी समझ में आएगा.  मेरा सोच तो ऐसा ही है.  मानव की हैसियत को प्रमाणित करने से पहले यदि हम आगे की बात करते हैं तो सब मनगढ़ंत ही होगा.  पहले स्थूल रूप में समाधान, फिर सूक्ष्म रूप में समाधान, फिर कारण रूप में समाधान.  इसमें किसको क्या तकलीफ है?  पहले शरीर और जीवन के संयुक्त स्वरूप को समझने/जीने से पहले आगे की बात हो नहीं सकती. 

मानव की हैसियत को समझना/जीना छोड़ कर यदि जीवन की हैसियत को समझने/जीने का प्रयास करते हैं तो या तो असमर्थता में जाते हैं या अपराध में जाते हैं.  या तो दूसरों को दोष देने/निंदा करने में जाते हैं या स्वयं को मूर्ख मान लेते हैं - ये दोनों गलत हैं. 

विधिवत बात है - चारों अवस्थाओं में परस्पर उपयोगिता-पूरकता प्रमाणित होने के बाद जीवन का हैसियत अपने आप से समझ में आता है.  पहले मानव चेतना स्पष्ट हो जाए (जीने में आ जाए), फिर देवचेतना और दिव्यचेतना उनसे जुड़ी ही हुई है.

- श्रद्धेय ए नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)

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