वेदान्त परंपरा में बताया गया है - साधन चतुष्टय सम्पन्नता के बाद श्रवण करने का पात्रता होता है. चार महावाक्यों को श्रवण करने से मनन-निधिध्यासन होता है. मनन-निधिध्यासन का मतलब है - समाधि. "समाधि में अज्ञात ज्ञात होता है" - यह लेख में भी लिखा है. हमारे समय में रमण मह्रिषी और जिनका भी हम सम्मान करते थे - उनकी भाषा में भी यह था.
मैंने पाया - समाधि में कोई अज्ञात ज्ञात होता नहीं है. जो ज्ञात था, वह समाप्त-प्रायः हो जाता है. समाधि की अवस्था में सुख-दुःख का भास् नहीं होता. मैं जब समाधि की अवस्था में बैठा था तब एक दरवाजा मेरी पीठ पर गिरा, उसकी नोक से पीठ में एक इंच गड्ढा हो गया. समाधि अवस्था से उठने पर जब शरीर का अध्यास हुआ तब दर्द का पता चला - कम से कम आधा घंटे बाद! इन सब गवाहियों के साथ मैं विश्वास दिलाना चाहता हूँ - समाधि होता है, यह सही है. बुजुर्गों ने जो बताया था, वह गलत नहीं है. लेकिन समाधि होने की प्रक्रिया fixed नहीं है, न उसको हम fix कर सकते हैं. मैं समाधि-संपन्न व्यक्ति हूँ - फिर भी मैं ऐसा कह रहा हूँ. मैं समाधि की प्रक्रिया को fix नहीं कर सकता हूँ. इतने काल में, इस क्रिया से संतुष्टि होगी - इसको हम कह नहीं सकते. यह अनिश्चयता है. काल और क्रिया दोनों को समाधि हज़म किया रहता है.
प्रश्न: संयम में क्या होता है?
उत्तर: संयम में क्रिया साक्षात्कार होने लगता है. स्थिति साक्षात्कार, गति साक्षात्कार, वस्तु साक्षात्कार - ये तीन बात हैं. इसमें से स्थिति साक्षात्कार और गति साक्षात्कार पूरा हो जाता है. स्थिति साक्षात्कार = सारा अस्तित्व कैसे है, यह पहचान होना. गति साक्षात्कार = क्यों है, यह पहचान होना. क्यों और कैसे का उत्तर हो जाता है. यही सत्य बोध का मतलब है. यह बोध होने के बाद अनुभव तो होता ही है. अनुभव की फिर निरंतरता है. पूरा जीवन अनुभव में तद्रूप हो जाता है. सदा-सदा संगीत, सदा-सदा सत्य, सदा-सदा समाधान, सदा-सदा न्याय. अब ईंटा खिसकने की कोई जगह ही नहीं है!
यह जो मैंने बताया वह आपको बोध हो गया, या बोध होने में सहायक हुआ - तो यह सार्थक हो गया. सूचना तो हो गयी. अध्ययन विधि से शब्द के अर्थ को ग्रहण करने की विधि से यह पूरा हो जाएगा.
- श्रद्धेय ए नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)
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