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Sunday, January 7, 2018

विज्ञान और ईश्वरवाद का उपकार



ज्यादा पढ़ा, मतलब ज्यादा सुविधा-संग्रह की प्यास
कम पढ़ा, मतलब कम सुविधा-संग्रह की प्यास

ज्यादा पढ़ा, मतलब ज्यादा confusion
कम पढ़ा, मतलब कम confusion

ज्यादा पढ़ा हो या कम पढ़ा हो - दोनों भ्रमित हैं!  जागृत होने के लिए दोनों को समान रूप से परिश्रम करना पड़ेगा.

'ज्ञानी' जिनको कहते हैं वे भी भ्रमित हैं
'विज्ञानी' जिनको कहते हैं वे भी भ्रमित हैं
'अज्ञानी' जिनको कहते हैं वे तो भ्रमित हैं ही!
तीनो को समान रूप से जागृति के लिए परिश्रम करने की आवश्यकता है.

इसमें एक बात देखा गया - जो लोग विज्ञान के स्वर में आ गए हैं, उनमे detail में जाने की एक खूबी है.  ये लोग तर्क संगत विधि से बात करना सीखे हैं.  यह उपकार हुआ. 

दूसरे, ईश्वरवाद ने यह सन्देश दिया है कि "संवेदनशीलता जीना नहीं है.  जीना क्या है - उसके लिए आपको सोचना ही होगा."  इतना वे चेता कर गए हैं.  इतना उपकार वे कर गए तभी तो हम आगे का काम कर पाए!  नहीं तो कहाँ से करते?

अभी आप में भी जिज्ञासा का शुरुआत यहीं से होगा.  संवेदनशीलता जीने की जगह नहीं है - इस बात को स्वीकारे बिना जिज्ञासा जन्मता ही नहीं है. 

भौतिकवाद ने तर्क संगत विधि से वस्तु को समझना सिखाया है.  दूसरे, भौतिकवादियों से दूर संचार प्रक्रिया मिली है, जो व्यवस्था में उपयोगी है.  भौतिकवादियों ने युद्ध सामग्री जो तैयार की, वह व्यवस्था में उपयोगी नहीं है.  इस तरह हम निष्कर्ष पर आये - विज्ञान का तकनीकी पक्ष ठीक है, ज्ञान पक्ष ठीक नहीं है.  विज्ञान ने अस्थिरता-अनिश्चयता प्रतिपादित किया है, यहाँ हम स्थिरता-निश्चयता प्रतिपादित कर रहे हैं.

मानव समाप्त हो सकता है पर अस्तित्व मिटता नहीं है और जीवन मरता नहीं है.  जीवन और अस्तित्व को जोड़ने वाला वस्तु है - रासायनिक क्रियाकलाप.  रासायनिक क्रियाकलाप से ही प्राणकोषा, और प्राणकोषा से रचित शरीर रचना का प्रकटन हुआ.  ये होने के बाद ही जीवन और शरीर का योग होता है.  जब कभी भी किसी धरती पर यह योग होना समाप्त हो जाता है तब वहां रासायनिक क्रियाकलाप लुप्त हो जाता है, भौतिक स्वरूप में वापस हो जाता है.  पदार्थावस्था से प्राणावस्था और प्राणावस्था से पुनः पदार्थावस्था के बीच आवर्तनशीलता ही प्राणपद चक्र है. 

मानव सुख धर्मी है, इसलिए उसमे अपेक्षा है - सुख-शान्ति से रहने की.  मानव मनः स्वस्थता का आशावादी है.  सर्वतोमुखी समाधान ही सुख है.  सर्वतोमुखी समाधान आता है - सहअस्तित्व रुपी अस्तित्व दर्शन ज्ञान, जीवन ज्ञान और मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान से.

- श्रद्धेय ए नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)

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