न्याय का केंद्र बिंदु है - उभय तृप्ति. न्याय को बनाए रखने के लिए 'सुरक्षा' है. अन्याय की दूर-दूर तक संभावना को दूर करने/रोकने के लिए सुरक्षा. अव्यवस्था या आकस्मिक दुर्घटना से बचाव के साथ चलने का नाम है -"सुरक्षा".
प्रश्न: आपने "मानवीय संविधान" जो प्रस्तुत किया है, उसका क्या आधार है?
उत्तर: मानवीय संविधान का मूल बिंदु है - मानवीयता पूर्ण आचरण. मानवीयता पूर्ण आचरण जागृति के आधार पर होता है. इस आचरण को हर देश-काल में प्रयोग करने की स्वतंत्रता ही मानवीय संविधान है.
वर्तमान में जो संविधान है वह "शक्ति केन्द्रित शासन" की व्याख्या करता है. शक्ति केन्द्रित शासन का अर्थ है - गलती को गलती से रोकना, अपराध को अपराध से रोकना, युद्ध को युद्ध से रोकना.
संविधान के लिए "संप्रभुता" को पहचानने की आवश्यकता होती है. (राज युग में) संप्रभुता को "जो गलती नहीं करता" के स्वरूप में पहचाना गया. ईश्वर गलती नहीं करता - इसलिए ईश्वर को संप्रभुता का आधार माना गया. फिर राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि मान कर कहा - राजा गलती नहीं करता, और राजा को संप्रभुता का आधार माना गया. फिर गुरु गलती नहीं करता, कह कर गुरु को संप्रभुता का आधार माना गया.
गणतंत्र आने पर संप्रभुता को पहचानने की आवश्यकता हुई. तो कहा गया - वोटर के पास संप्रभुता है. वोटर गलती नहीं करता, ऐसा सोचा गया. वोटर के गलती नहीं करने की क्या गारंटी है? इसका नहीं में उत्तर मिलने पर सोचा गया - "वोटर वोट देते समय गलती नहीं करता". इस पर हमारे (भारत के) संविधान की "संप्रभुता" टिका हुआ है! संविधान में यह तय नहीं है कि राष्ट्रपति गलती नहीं कर सकता या प्रधानमंत्री गलती नहीं कर सकता.
मानवीय संविधान में कहा -
- प्रबोधन करने योग्य, प्रमाणित करने योग्य अधिकार सम्पन्नता ही प्रबुद्धता या समझदारी है.
- समझदारी को व्यवस्था में जी कर प्रमाणित करना संप्रभुता है. न्याय, समाधान और समृद्धि को प्रमाणित करना संप्रभुता है. मानव द्वारा व्यवस्था में जीना = मानवीयता पूर्ण आचरण
- मानवीयता पूर्ण आचरण को सर्व देश-काल में उपयोग करना सर्वमानव का मौलिक अधिकार है.
- मानव द्वारा अपने मौलिक अधिकार को प्रमाणित करना ही राज्य है.
हर व्यक्ति मानवीयता पूर्ण आचरण को अपने जीने में ला सकता है. हर व्यक्ति का संप्रभुता संपन्न व्यक्तित्व हो सकता है.
- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (सितम्बर १९९९, आन्वरी आश्रम)
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