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Saturday, January 7, 2017

मूल बात की भाषा को न बदला जाए



प्रश्न:  हम आपको कैसे सुनें?  किस तरह आपसे अपनी जिज्ञासा व्यक्त करें?  कैसे आपकी बात का मनन करें ताकि उसको हम पूर्णतया सही-सही ग्रहण कर सकें और किसी निष्कर्ष पर पहुँच सकें?

उत्तर: जीने में इसको प्रमाणित करना चाहते हैं, तभी यह जिज्ञासा बनता है.  सुनने का तरीका, सोचने का तरीका, सोचने में कहीं रुकें तो प्रश्न करने का तरीका, प्रश्न के उत्तर को पुनः अपने विचार में ले जाने का तरीका, अंततोगत्वा निश्चयन तक पहुँचने का तरीका - ये सब इसमें शामिल है.  यह संवाद की अच्छी पृष्ठ-भूमि है, इस पर हमें ध्यान देने की ज़रूरत है. 

इसमें पहली बात है जो सुनते हैं उसी को सुनें, उसमें मिलावट करने का प्रयत्न न करें।  भाषा को न बदलें।  भाषा से इंगित होने वाली वस्तु को न बदलें।  अभी लोगों पर इस बात की गहरी मान्यता है कि "जिससे बात करनी है, उसी की भाषा में हमको बात करना पड़ेगा।"  जबकि उस भाषा के चलते ही वह सुविधा-संग्रह के चंगुल में पहुँचा है.  सुविधा-संग्रह को पूरा करने के उद्देश्य से ही उस सारी भाषा का प्रयोग है, जबकि वास्तविकता यह है कि सुविधा-संग्रह लक्ष्य पूरा होता नहीं है.  इस संसार में सुविधा-संग्रह से मुक्त कोई भाषा ही नहीं है.  चाहे १० शब्दों वाली भाषा हो या १० करोड़ शब्दों वाली भाषा हो.  इस बात को सम्प्रेषित करने के लिए भाषा को बदलना होगा (ऐसा मैंने निर्णय किया).  जिस भाषा से अर्थ बोध होता हो वह भाषा सही है.  जिस भाषा में अर्थ बोध ही नहीं होना है, सुविधा-संग्रह का चक्कर ही बना रहना है, उस भाषा में इसको बता के भी क्या होगा?  ज्ञानी, विज्ञानी, अज्ञानी तीन जात में सारे आदमी हैं.  ये तीनों जात के आदमी सुविधा-संग्रह के चक्कर में पड़े हैं. 

तो मूल बात की भाषा को न बदला जाए, उससे इंगित वस्तु को न बदला जाए.  वस्तु (वास्तविकता) स्थिर है.  यदि भाषा के साथ तोड़-मरोड़ करते हैं तो अर्थ बदल जाएगा, अर्थ बदला तो उससे वस्तु इंगित नहीं होगा। 

मैंने जब इस बात को रखा तो कुछ लोगों ने कहा - "आप ऐसा कहोगे तो हम कुछ भी अपना नहीं कर पाएंगे?"

मैंने उनसे पूछा - इस भाषा को छोड़ के, कुछ और भाषा जोड़के आप क्या कर लोगे?  सिवाय संसार को भय-प्रलोभन और सुविधा-संग्रह की ओर दौड़ाने के आप क्या कर लोगे?  मूल बात की भाषा को बदलोगे तो आपका कथन वही सुविधा-संग्रह में ही जाएगा।  धीरे-धीरे उनको समझ में आ गया कि जो कहा जा रहा है उसको उसी के अनुसार सुना जाए, समझा जाए और जी के प्रमाणित किया जाए.  जी के प्रमाणित करने में कमी मिले तो इसको बदला जाए.  जिए बिना कैसे इसको बदलोगे?  इसको जिए नहीं हैं, पहले से ही इसमें परिवर्तन करने लगें तो वह आपकी अपनी व्याख्या होगी, मूल बात नहीं होगी। 

परिवर्तन के साथ घमंड होता ही है.  मूल बात का reference point छूट गया फिर.  reference point छोड़ के हम संसार को सच्चाई बताने गए तो सवाल आएगा ही - इसका आधार क्या है?  स्वयं अनुभव हुआ नहीं है तो क्या हालत होगी? 

या तो इस घोषणा के साथ शुरू करो कि मैं अनुभव-संपन्न हूँ, प्रमाण हूँ.  नहीं तो reference point से शुरू करो.  अनुभव यदि हो भी गया तो किस आधार पर हुआ - यह प्रश्न आएगा।  उसके उत्तर में जाएंगे तो मूल बात का reference ही आएगा।

- श्री ए नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)

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