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Thursday, January 5, 2017

अनुभव की कसौटी



प्रश्न:  मैं जो यह सोच रहा हूँ कि मैं भी अनुभव कर सकता हूँ, कहीं यह अत्याशा तो नहीं है?

उत्तर:  हर जीवन में अनुभव करने वाला अंग (आत्मा) समाहित है ही.  उसको आपको बनाना नहीं है, केवल प्रयोग करना है.

प्रश्न:  आपकी बात की पूरी सूचना मिल चुकी है, ऐसा लगता है.  इसको स्वीकारना है, यह भी निश्चित है.  लेकिन अनुभव को लेकर बात करते हैं तो कुछ कहना नहीं बनता।

उत्तर:  सूचना ग्रहण होने और इस प्रस्ताव के अनुरूप जीने का निश्चयन होने के बाद ही अनुभव होता है.  यही क्रम है.  हम बेसिलसिले में नहीं हैं, सिलसिले में हैं.  अनुभव होके रहेगा क्योंकि जीवन की प्यास है अनुभव!

प्रश्न: "जागृति निश्चित है" यह तो ठीक है, पर कब कोई व्यक्ति अनुभव तक पहुंचेगा - इसकी कोई समय सीमा है या नहीं?

उत्तर: भ्रमित संसार में कितने समय में कौन जागृत होगा इसकी समय सीमा नहीं है.  भ्रमित परंपरा जागृत हो सकता है - यहाँ हम आ गए हैं.  इसमें एक व्यक्ति अनुभव संपन्न हुआ - प्रमाणित हुआ.  उसके बाद दो व्यक्ति हुए, प्रमाणित हुए. फिर २००० का होना और फिर सम्पूर्ण मानव जाति का जागृत होना शेष है.

प्रश्न:  मुझे कभी-कभी यह लगता है, यह मेरे वश का रोग है भी या नहीं?  यदि मुझे अनुभव हो ही नहीं सकता तो मैं इसके अध्ययन में क्यों अपना सिर डालूँ?

उत्तर:  आपका यह पूछना जायज है.  इस बात की उपयोगिता को किस कसौटी पे तौला जाए?  इसको "रूप" के साथ जोड़ के तौलोगे तो यह व्यर्थ लगेगा।  इसको "बल" के साथ जोड़ के देखोगे तो यह व्यर्थ लगेगा।  इसको "धन" के साथ जोड़ के देखोगे तो यह व्यर्थ लगेगा।  इसको "पद" के साथ जोड़ के देखोगे तो यह व्यर्थ लगेगा।  इसको "बुद्धि" के साथ जोड़ के देखोगे तो यह सार्थक लगेगा।  यह केवल "लगने" की बात मैं कर रहा हूँ.  रूप, बल, धन और पद के आधार पर मानव चेतना प्रमाणित नहीं होती।  बुद्धि के आधार पर ही मानव चेतना प्रकट होती है.  बुद्धि का प्रकाशन प्रमाण के आधार पर ही होता है.  प्रमाण अनुभव के आधार पर ही होता है.  अनुभव अध्ययन विधि से ही होगा।  दूसरी विधि से होगा नहीं।  दूसरी विधि है - साधना, समाधि, संयम.  उसके लिए लेकिन आप अनुभव का मुद्दा ही नहीं बना पाएंगे।  इस सब बात पर चर्चा तो होना चाहिए, मेरे अनुसार!

प्रश्न: इतना तो मुझे भास् होता है कि आपके पास कोई अनमोल सम्पदा है, जो मेरे पास नहीं है.....

उत्तर:  इतना ही नहीं यह सम्पदा अभी प्रचलित परंपरा में भी उपलब्ध नहीं है.  इसके बाद यह बात आती है - क्या यह सम्पदा एक से दूसरे में हस्तांतरित हो सकती है या नहीं?  इसमें अभी तक जितना हम चले हैं, उसमें आपको क्या लगता है - यह हस्तांतरित हो सकती है या नहीं? 

जितना अभी तक चले हैं, उससे यह तो लगता है कि आपकी बात हस्तांतरित होती है.

मुख्य बात इतना ही है.  आपके प्रमाणित होने पर ही यह बात आपमें हस्तांतरित होगा।  एक ही सीढ़ी बचा है.  आपको यदि इस बात को हस्तांतरित करने वाला बनना है तो आपको अनुभव करना ही होगा, जीना ही होगा।  ये दो ही बात है.  इससे कम में काम नहीं चलेगा, इससे ज्यादा की जरूरत नहीं है.  मैं यह मानता हूँ इस बात का प्रकटन मानव के सौभाग्य से हुआ है.  मानव का सौभाग्य होगा तो इसे स्वीकारेगा।  मानव को धरती पर बने रहना है तो परिवर्तन निश्चित है.  मानव को धरती पर रहना नहीं है तो जो वह कर रहा है, वही ठीक है.

- श्री ए नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित जनवरी २००७, अमरकंटक

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