(मध्यस्थ दर्शन के) इस अनुसन्धान के मूल में रूढ़ियों के प्रति अविश्वास, कट्टरपंथ के प्रति अविश्वास रहा है. सार रूप में वेदान्त रूप में "मोक्ष और बंधन" पर जो कुछ भी वांग्मय उपलब्ध है, इस पर हुई शंका। परिणामतः निदिध्यासन, समाधि, मनोनिरोध, दृष्टाविधि के लिए जो कुछ भी उपदेश हैं उसी के आधार पर प्रयत्न और अभ्यास किया गया. निर्विचार स्थिति को प्राप्त करने के बाद परंपरा जिसको समाधि, निदिध्यासन, पूर्ण बोध, निर्वाण कुछ भी नाम लिया है, इसी स्थली में मूल शंका का उत्तर नहीं मिल पाया। परिणामतः इसके विकल्प के लिए तत्पर हुए. पूर्ववर्ती इशारों के अनुसार 'संयम' का एक ध्वनि थी. उस ध्वनि को संयम में तत्परता को बनाया गया. आकाश (शून्य) में संयम किया। निर्विचार स्थिति में अस्तित्व स्वीकार/बोध सहित सभी ओर आकाश में समायी हुई वस्तु दिखती रही, इसलिए आकाश में संयम करने की तत्परता बनी. कुछ समय के उपरान्त ही अस्तित्व सह-अस्तित्व के रूप में यथावत देखने को मिला। अस्तित्व में ही 'जीवन' को देखा गया. अस्तित्व में अनुभूत हो कर जागृत हुए. ऐसे अनुभव के पश्चात अस्तित्व सहज विधि से हर व्यक्ति अनुभव योग्य होना देखा गया. अनुभव करने वाली वस्तु को 'जीवन' रूप में देखा गया. इसी आधार पर "अनुभवात्मक अध्यात्मवाद" को प्रस्तुत करने में सत्य सहज प्रवृत्ति उद्गमित हुई. यह मानव सम्मुख प्रस्तुत है.
- अनुभवात्मक अध्यात्मवाद से
- अनुभवात्मक अध्यात्मवाद से
No comments:
Post a Comment