ज्ञान व्यापक वस्तु है. ज्ञान के आधार पर ही चेतना है. जीव-चेतना में मानव शरीर को जीवन मान करके जीता है - जिससे मानव टूटता है. वही मानव जीवन को समझता है. जीवन में ही ज्ञान होता है. ज्ञानगोचर-विधि से ही जीवन समझ में आता है, सत्य समझ में आता है, सह-अस्तित्व समझ में आता है. कार्य विधि से यह समझ में नहीं आता है. ज्ञानगोचर विधि से ही जीवन को समझा जाए, सह-अस्तित्व को समझा जाए, विकास-क्रम, विकास, जागृति-क्रम, जागृति को समझा जाए. फिर जिया जाए - ठसके से!
प्रश्न: ज्ञानगोचर से क्या आशय है?
उत्तर: जो संवेदनाओं के पकड़ में न आये, पर फिर भी समझ में आये - वह ज्ञानगोचर है. ज्ञान समझ में आता है, चक्षु में नहीं आता. जैसे किसी वस्तु में भार है, वह समझ में आता है - पर वह दिखाई नहीं देता है. भार इस तरह ज्ञानगोचर है. यहीं से शुरुआत है.
- बाबा श्री नागराज के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २०१२, अमरकंटक)
प्रश्न: ज्ञानगोचर से क्या आशय है?
उत्तर: जो संवेदनाओं के पकड़ में न आये, पर फिर भी समझ में आये - वह ज्ञानगोचर है. ज्ञान समझ में आता है, चक्षु में नहीं आता. जैसे किसी वस्तु में भार है, वह समझ में आता है - पर वह दिखाई नहीं देता है. भार इस तरह ज्ञानगोचर है. यहीं से शुरुआत है.
- बाबा श्री नागराज के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २०१२, अमरकंटक)
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