व्यापक में कोई परिवर्तन नहीं होता। व्यापक में संपृक्त प्रकृति में परिवर्तन होता है।
हर वस्तु अपने तरीके से व्यापक में भीगा है, उसके अनुसार हर वस्तु का काम है। वस्तु के अनुसार काम है। वस्तु के अनुसार कार्य-ऊर्जा का प्रकटन है। वस्तु के अनुसार कार्य-ऊर्जा का प्रकटन है - जो न ज्यादा है, न कम है।
प्रश्न: धरती पर पहले एक ही अवस्था (पदार्थ-अवस्था) थी, और आज चारों अवस्थाएं प्रकट हैं। तो क्या धरती की कार्य-ऊर्जा पहले से बढ़ गयी?
उत्तर: इसमें ज्यादा-कम कुछ नहीं होता। क्रियाशीलता है, उतना ही है। जैसे - पहले धरती पर १२० तरह के परमाणुओं के प्रकटन के लिए क्रियाशीलता रही। उसके बाद ये १२० फिर क्रियाशील रहे, अगली अवस्था के प्रकटन के लिए। कार्य-ऊर्जा में परिवर्तन कहाँ हुआ - आप ही सोचो! जितना धरती पर द्रव्य था, उतना ही रहा। कुल मिला कर जो ऊर्जा प्रकट हो रही है, वह उतनी ही है। अगली अवस्था जो प्रकट होती है, उसकी उपयोगिता-पूरकता का स्वरूप पिछली अवस्था से भिन्न हो जाता है। कार्य-ऊर्जा उतना ही रहता है। सम्पूर्ण अस्तित्व में कुल मिला कर साम्य-ऊर्जा उतना ही रहता है, कार्य-ऊर्जा उतना ही रहता है - परिवर्तित नहीं होता। साम्य-ऊर्जा ज्यादा-कम नहीं होता, कार्य-ऊर्जा भी ज्यादा-कम नहीं होता। कार्य-ऊर्जा का फल-परिणाम ज्यादा-कम होता है।
- बाबा श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २०१०, अमरकंटक)
हर वस्तु अपने तरीके से व्यापक में भीगा है, उसके अनुसार हर वस्तु का काम है। वस्तु के अनुसार काम है। वस्तु के अनुसार कार्य-ऊर्जा का प्रकटन है। वस्तु के अनुसार कार्य-ऊर्जा का प्रकटन है - जो न ज्यादा है, न कम है।
प्रश्न: धरती पर पहले एक ही अवस्था (पदार्थ-अवस्था) थी, और आज चारों अवस्थाएं प्रकट हैं। तो क्या धरती की कार्य-ऊर्जा पहले से बढ़ गयी?
उत्तर: इसमें ज्यादा-कम कुछ नहीं होता। क्रियाशीलता है, उतना ही है। जैसे - पहले धरती पर १२० तरह के परमाणुओं के प्रकटन के लिए क्रियाशीलता रही। उसके बाद ये १२० फिर क्रियाशील रहे, अगली अवस्था के प्रकटन के लिए। कार्य-ऊर्जा में परिवर्तन कहाँ हुआ - आप ही सोचो! जितना धरती पर द्रव्य था, उतना ही रहा। कुल मिला कर जो ऊर्जा प्रकट हो रही है, वह उतनी ही है। अगली अवस्था जो प्रकट होती है, उसकी उपयोगिता-पूरकता का स्वरूप पिछली अवस्था से भिन्न हो जाता है। कार्य-ऊर्जा उतना ही रहता है। सम्पूर्ण अस्तित्व में कुल मिला कर साम्य-ऊर्जा उतना ही रहता है, कार्य-ऊर्जा उतना ही रहता है - परिवर्तित नहीं होता। साम्य-ऊर्जा ज्यादा-कम नहीं होता, कार्य-ऊर्जा भी ज्यादा-कम नहीं होता। कार्य-ऊर्जा का फल-परिणाम ज्यादा-कम होता है।
- बाबा श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २०१०, अमरकंटक)
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