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Thursday, May 20, 2010

साम्य-ऊर्जा, कार्य-ऊर्जा, प्रकटनशीलता

व्यापक-वस्तु साम्य रूप में प्रकृति की सभी इकाइयों को प्राप्त है। यह एक दूसरे के बीच में खाली-स्थली के रूप में सभी जगह दिखता है। दो धरतियों के बीच में यही व्यापक वस्तु है। उसी तरह - दो व्यक्तियों के बीच में, दो जानवरों के बीच में, दो अणुओं के बीच में, दो परमाणुओं के बीच में, दो परमाणु-अंशों के बीच में भी यही व्यापक-वस्तु है। सभी जगह है, इसलिए व्यापक है।

प्रश्न: व्यापक वस्तु के इस तरह प्रकृति की सभी इकाइयों के बीच में होने का क्या प्रयोजन है?

उत्तर: व्यापक वस्तु के इस तरह प्रकृति की इकाइयों के बीच में होने से उन इकाइयों के एक-दूसरे को पहचानने की व्यवस्था है। यदि इकाइयों के बीच में खाली-स्थली नहीं होती तो वे एक-दूसरे को पहचानते कैसे? व्यापक-वस्तु के पारदर्शी होने से इकाइयों का एक-दूसरे को पहचानना संभव है।

दूसरे, व्यापक-वस्तु सभी इकाइयों को प्राप्त है। यह सभी इकाइयों में पारगामी है। एक परमाणु-अंश, एक परमाणु, एक अणु, एक पत्थर, एक पेड़, एक जानवर, एक मनुष्य, एक धरती - सभी में से यह पारगामी है।

प्रश्न: पारगामियता है, इसका क्या प्रमाण है?

उत्तर: इकाइयों की ऊर्जा-सम्पन्नता ही पारगामियता का प्रमाण है। इकाइयों के कार्य करने के पहले जो ऊर्जा उनको प्राप्त रहता है - उसका नाम है साम्य-ऊर्जा। साम्य-ऊर्जा सबको प्राप्त है। साम्य-ऊर्जा प्राप्त होने से सभी प्रकृति क्रियाशील है। क्रियाशीलता के फलस्वरूप कार्य-ऊर्जा है। साम्य-ऊर्जा को प्रचलित-विज्ञान में नहीं पढ़ाया जाता। मध्यस्थ-दर्शन के अध्ययन में यहाँ साम्य-ऊर्जा को हम पढ़ाते हैं।

प्रश्न: कार्य-ऊर्जा का क्या प्रयोजन है?

उत्तर: कार्य-ऊर्जा का प्रयोजन है - "एक दूसरे का विकास"! जिससे विकास-क्रम, विकास, जागृति-क्रम, और जागृति का प्रकटन होता है। उपयोगिता-पूरकता के रूप में कार्य-ऊर्जा है। अगली अवस्था के लिए पिछली अवस्था की उपयोगिता, पिछली अवस्था के लिए अगली अवस्था की पूरकता। "पिछली अवस्था में अगली अवस्था का भ्रूण बना रहता है।" - यह सिद्धांत है। यह सिद्धांत प्रचलित-विज्ञान में नहीं पढ़ाया जाता। उसको यहाँ मध्यस्थ-दर्शन के अध्ययन में हम पढ़ाते हैं।

पिछली अवस्था में अगली अवस्था का भ्रूण बना रहता है, तभी अगली अवस्था प्रकट होती है। इस तरह - सह-अस्तित्व नित्य प्रकटनशील है। सह-अस्तित्व में प्रकटनशीलता के आधार पर मनुष्य भी प्रकट हो गया।

प्रश्न: मनुष्य के प्रकट होने का क्या प्रयोजन है?

उत्तर: मनुष्य के प्रकट होने का प्रयोजन है, वह "सह-अस्तित्व के प्रतिरूप" स्वरूप में काम करे। सह-अस्तित्व दर्शन ज्ञान के साथ अपने जीवन को सार्थक बनाए।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २०१०, अमरकंटक)

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