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Wednesday, March 26, 2008

साक्षात्कार

(१) अध्ययन मूलक विधि से हम साक्षात्कार तक पहुँचते हैं।
(२) परिभाषा-विधि से हम शब्द के अर्थ को अपनी कल्पना में लाते हैं।
(३) उस कल्पना के आधार पर अस्तित्व में वस्तु को पहचानने जाते हैं। कल्पनाशीलता समझ नहीं है। कल्पनाशीलता सबका अधिकार है। कल्पनाशीलता का प्रयोग करते हुए हमको वस्तु को पहचानना है। परिभाषा आपकी कल्पनाशीलता के लिए रास्ता है। आपकी कल्पनाशीलता वस्तु को छू सकता है। वस्तु को जीवन ही समझता है। जीवन समझता है तो वह साक्षात्कार ही होता है।
(४) अस्तित्व में वस्तु पहचानने पर वह वस्तु साक्षात्कार हुआ। वस्तु के रूप में ही वस्तु साक्षात्कार होता है - शब्द के रूप में नहीं होता।
(५) ऐसे साक्षात्कार होने पर वह बोध और संकल्प में जा कर अनुभव-मूलक विधि से पुनः प्रमाण-बोध में आ जाता है।
(६) प्रमाण बोध में आ जाने से निश्चयन हो जाता है - कि यह वस्तु ऐसे ही है!
(७) सह-अस्तित्व पहले साक्षात्कार होना। उसके बाद जीवन साक्षात्कार होना। जीवन साक्षात्कार होने के साथ ही अजीर्ण और भूखे परमाणु भी साक्षात्कार होना। हमको जैसे हुआ, वैसे ही होगा आपको। तभी आपका अध्ययन हुआ, जिससे आप प्रमाणित होंगे।
(८) अध्ययन एक निश्चित पद्दति है। निश्चित लक्ष्य को लेकर यदि आपमें कोई अवरोध नहीं है - तो आपको समझने में समय नहीं लगेगा। निश्चित लक्ष्य = समाधान। सर्वतोमुखी समाधान संपन्न होना ही अध्ययन का लक्ष्य है। सर्वतोमुखी समाधान संपन्न हो कर जब हम जीने के लिए जाते हैं, तो समृद्धि स्वाभाविक रूप में आता है। रास्ता निकलता है। समृद्धि के लिए अनेक विधियाँ है। सर्वतोमुखी समाधान में अपने को प्रमाणित होना है - इतना भर लक्ष्य रखने से ही आप पूरा समझ सकते हैं।

- श्री नागराज शर्मा के साथ जनवरी २००७ में संवाद पर आधारित।

Monday, March 17, 2008

ज्ञानावस्था की mutiplication theory

दर्शन का मतलब है "जीना" = "मैं जैसा हूँ"।

"मेरा जीना आपके लिए दर्शन है। आपका जीना मेरे लिए दर्शन है। मेरा आचरण मेरे लिए दर्शन है। मेरे आचरण को मैं जानता-मानता हूँ, इसलिए यह मेरा, मेरे लिए दर्शन है। मेरे आचरण को जो आप देखते हैं - आपके लिए प्रेरणा रूप में वह दर्शन है। अध्ययन पूर्वक यह प्रेरणा आपका स्वत्व बनता है। आपका जब यह स्वत्व बन जाता है - तब यह आपका दर्शन हो गया। इस तरह ज्ञानावस्था की multiplication theory बनी। "

- श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित। जनवरी २००७

Monday, March 10, 2008

साधन और साध्य

कीचड में खडा आदमी को पता लग गया कि - यह कीचड है। इससे बाहर निकलना है, यह पता लग गया। बाहर निकलने का रास्ता अध्ययन है - यह पता लग गया।

विचार मजबूत होते-होते इससे पार लगने का रास्ता खोज ही लेते हैं।

वर्तमान में जैसे भी हैं, जैसे भी चल कर पहुंचे हैं, वर्तमान में हमारे पास जो कुछ भी है - उसको "साधन" रूप में माना जाए, "साध्य" न माना जाए। इतना ही बात है।

साधन रूप मानने से हमारे बाहर निकलने का रास्ता बन जाता है। साध्य मान लेने से हमारा बाहर निकलने का रास्ता बनता ही नहीं है। बाँध लग जाता है।

वर्तमान में उत्साहित कैसे रहे? - हम जो कुछ भी कर रहे हैं, वह इससे आगे निकलने के लिए रास्ता बनाने के लिए कर रहे हैं। न कि इसमें डूबने, और डूब कर मरने के लिए। इस बात को आप स्वीकार सकते हैं - हर व्यक्ति स्वीकार सकता है। क्योंकि हर व्यक्ति ५१% से अधिक सही है।

- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)

प्रकृति में पढ़ा का क्या अर्थ है?

आप जो कहते हैं कि आपने समाधि-संयम पूर्वक प्रकृति में पढ़ा - उसका क्या अर्थ है?

प्रकृति अपने हर पन्ने को खोला। जैसा प्रकृति है - वैसा हमारे सम्मुख प्रस्तुत हुआ। जैसे अभी हम देख रहे हैं - वैसे ही। समझना और देखना एक ही चीज है - मैंने पहले आप को बताया है। मैं समझने योग्य ढंग से प्रस्तुत हुआ - जिससे प्रकृति स्वयं हमारे सम्मुख प्रस्तुत होता रहा। वैसे ही - जैसे अभी मैं आपके सम्मुख प्रस्तुत हो रहा हूँ। मैं भी तो प्रकृति का एक अंग ही तो हूँ! जो मैं कह रहा हूँ - वह अर्थ या वास्तविकता अस्तित्व में होना ही आप में स्वीकृत होता है। मेरे द्वारा जो अर्थ आप में पहुँचता है - वह अस्तित्व में ही है। अस्तित्व में आपको बोध कराने की प्रक्रिया मैंने शुरू कर दिया। इसको अनुभवगामी कहा। मैं जो प्रस्तुत होता हूँ - उसको अनुभव मूलक कहा।

अभी आप प्रकृति में से ही पढ़ रहे हो। अभी मैं एक व्यक्ति के रूप में प्रकृति हूँ। मेरे सम्मुख समग्र प्रकृति रही। साधना - समाधि - संयम का मतलब यही है। वह सब करने से यह हुआ। इसको मैंने अनुसंधान नाम दिया है। आप जो कर रहे हैं - वह शोध विधि है।

- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)