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Tuesday, January 22, 2008

चित्रण और बोध

(अनुभव से पहले) चित्त में जो चित्रण होता है - वह अनुभव मूलक विधि से प्रमाणित नहीं होता। संवेदना के रुप में ही व्यक्त होता है।

अध्ययन पूर्वक बुद्धि में जो बोध होता है - वह अनुभव मूलक विधि से प्रमाण प्रस्तुत होता है।

चित्त में साक्षात्कार होने के बाद बुद्धि में बोध ही होता है। बोध होने के बाद अनुभव-मूलक विधि से पुनः प्रमाण-बोध बुद्धि में होता है। प्रमाण-बोध का संकल्प होता है। प्रमाणित करने के लिए संकल्प होता है। संकल्प होने से उसका चिंतन होता है - चित्त में। चिंतन पूर्वक उसका चित्रण होता है। वह चित्रण द्वारा हम आगे प्रकाशित करना शुरू कर देते हैं।

अध्ययन-विधि से सीधा साक्षात्कार-बोध होता है - चित्रण नहीं होता। तुलन से सीधे साक्षात्कार, साक्षात्कार से सीधा बोध, उसके बाद अनुभव, और फिर अनुभव का परावर्तन बुद्धि, चित्त, वृत्ति, और मन पर।

मनुष्य की कल्पनाशीलता का तृप्ति बिन्दु सह-अस्तित्व में ही है। कल्पनाशीलता की रौशनी में हमें साक्षात्कार-बोध हो गया। अनुभव की रौशनी बना ही रहता है। फलस्वरूप अनुभव की रौशनी में कल्पनाशीलता विलय हो जाती है। अनुभव की रौशनी प्रभावी हो जाती है।

- श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६) 

अर्थ अस्तित्व में वस्तु है।

"सुनना भाषा है।
समझना अर्थ है।
अर्थ अस्तित्व में वस्तु है।
वस्तु समझ में आता है - तो हम अर्थ समझते हैं।
समझ जो है - वह अनुभव है।
शब्द अनुभव नहीं है।
कई विधियों से हम छूट छूट के चलते रहे, उनको जोड़ने की विधि अनुभव ही है।
वह विधि है - अस्तित्व में वस्तु के रुप में अनुभव करना, प्रमाणित करना - इतना ही है।
प्रमाणित करने में मानवीयता पूर्ण आचरण आता है। आचरण आने से व्यवस्था में जीना होता है।
समग्र व्यवस्था में जीने का सूत्र बनता है।
हम जितना जीते हैं - उसके आगे का सूत्र अपने आप जीवन से निकलता ही जा रहा है।
सर्वतोमुखी समाधान को मनः स्वस्थता के रुप में मैंने अनुभव किया है। "

श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६)

अर्थ को समझना हर व्यक्ति के बलबूते का है।

जीवन में स्वयम से कोई चीज छुपा नहीं है। शरीर को जब तक जीवन माने रहते हैं, जीवन छुपा ही रहता है। जीवन को जीवन मानने की आवश्यकता है। ऐसा होने पर धीरे धीरे प्रमाणित होना बनता है। हमारे विचार , इच्छा, संकल्प की तुष्टि और प्रमाण का पहचान - इस ढंग से हम कार्य करना शुरू करते हैं, तब जीवन में अर्थ-बोध होना सहज होता है। हमारे सारे सोच-विचार को इसमें लगा देते हैं, तो अनुभव होने की सम्भावना बन जाती है।

मुझमें आशा की तुष्टि चाहिऐ। इस तुष्टि को क्या नाम दिया जाये? नाम एक ही होता है - समाधान। मन में समाधान हो जाये! हर विचार में समाधान प्रकट हो जाये। हर इच्छा में समाधान समा जाये। हर संकल्प में समाधान स्पष्ट हो जाये। ऐसे स्थिति में हम पूरा का पूरा समाधान के योग्य हो जाते हैं। अनुभव मूलक विधि से अभिव्यक्ति इतना ही होता है।

अर्थ के साथ तैनात होने पर हमको बोध तुरंत ही होता है। तत्काल हमें चित्त में साक्षात्कार की तुष्टि हो जाती है। फलस्वरूप अनुभव हो जाता है - इतनी ही बात है। अनुभव के बाद हम कहीं रुकने वाले नहीं हैं। यह किसी दूसरे जोड़ जुगाड़ से नहीं होता।

सभी लोग शब्दों के रुप में ही प्रकट होंगे। उसके अर्थ को हर व्यक्ति समझता है। अर्थ को समझना हर व्यक्ति के बलबूते का है। अर्थ ही वस्तु है। वस्तु ही अर्थ है। सम्पूर्ण वस्तु अस्तित्व में है। सम्पूर्ण अस्तित्व सह-अस्तित्व स्वरूप में है। यह सम्पूर्ण अस्तित्व चार अवस्थाओं के रुप में प्रकट है। सम्पूर्ण वस्तु का नाम है। वह नाम हम सुनते हैं। नाम सुनकर अस्तित्व में वस्तु को पहचानना है - इतना ही है।

मानव ने ही हर वस्तु का नामकरण किया। नाम से हर वस्तु का पहचान होता है। यह प्रक्रिया हर व्यक्ति में निहित है। केवल इस प्रक्रिया को प्रयोग करने की बात है। संवेदनशीलता के लिए प्रयोग किया - सफल हुए। अब संज्ञानशीलता के लिए इसका प्रयोग करना है - और सफल होना है। इतनी ही बात है।

संवेदनशीलता से हम सफल होंगे या संज्ञानशीलता से - पहले इसको भी तय कर लो! संज्ञानशीलता के लिए झकमारी है। संवेदनशीलता से अपराध-मुक्त होना बनता नहीं है। अपना-पराया से मुक्त होना बनेगा नहीं।

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६)