(अनुभव से पहले) चित्त में जो चित्रण होता है - वह अनुभव मूलक विधि से प्रमाणित नहीं होता। संवेदना के रुप में ही व्यक्त होता है।
अध्ययन पूर्वक बुद्धि में जो बोध होता है - वह अनुभव मूलक विधि से प्रमाण प्रस्तुत होता है।
चित्त में साक्षात्कार होने के बाद बुद्धि में बोध ही होता है। बोध होने के बाद अनुभव-मूलक विधि से पुनः प्रमाण-बोध बुद्धि में होता है। प्रमाण-बोध का संकल्प होता है। प्रमाणित करने के लिए संकल्प होता है। संकल्प होने से उसका चिंतन होता है - चित्त में। चिंतन पूर्वक उसका चित्रण होता है। वह चित्रण द्वारा हम आगे प्रकाशित करना शुरू कर देते हैं।
अध्ययन-विधि से सीधा साक्षात्कार-बोध होता है - चित्रण नहीं होता। तुलन से सीधे साक्षात्कार, साक्षात्कार से सीधा बोध, उसके बाद अनुभव, और फिर अनुभव का परावर्तन बुद्धि, चित्त, वृत्ति, और मन पर।
मनुष्य की कल्पनाशीलता का तृप्ति बिन्दु सह-अस्तित्व में ही है। कल्पनाशीलता की रौशनी में हमें साक्षात्कार-बोध हो गया। अनुभव की रौशनी बना ही रहता है। फलस्वरूप अनुभव की रौशनी में कल्पनाशीलता विलय हो जाती है। अनुभव की रौशनी प्रभावी हो जाती है।
- श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६)
अध्ययन पूर्वक बुद्धि में जो बोध होता है - वह अनुभव मूलक विधि से प्रमाण प्रस्तुत होता है।
चित्त में साक्षात्कार होने के बाद बुद्धि में बोध ही होता है। बोध होने के बाद अनुभव-मूलक विधि से पुनः प्रमाण-बोध बुद्धि में होता है। प्रमाण-बोध का संकल्प होता है। प्रमाणित करने के लिए संकल्प होता है। संकल्प होने से उसका चिंतन होता है - चित्त में। चिंतन पूर्वक उसका चित्रण होता है। वह चित्रण द्वारा हम आगे प्रकाशित करना शुरू कर देते हैं।
अध्ययन-विधि से सीधा साक्षात्कार-बोध होता है - चित्रण नहीं होता। तुलन से सीधे साक्षात्कार, साक्षात्कार से सीधा बोध, उसके बाद अनुभव, और फिर अनुभव का परावर्तन बुद्धि, चित्त, वृत्ति, और मन पर।
मनुष्य की कल्पनाशीलता का तृप्ति बिन्दु सह-अस्तित्व में ही है। कल्पनाशीलता की रौशनी में हमें साक्षात्कार-बोध हो गया। अनुभव की रौशनी बना ही रहता है। फलस्वरूप अनुभव की रौशनी में कल्पनाशीलता विलय हो जाती है। अनुभव की रौशनी प्रभावी हो जाती है।
- श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६)