जीवन में स्वयम से कोई चीज छुपा नहीं है। शरीर को जब तक जीवन माने रहते हैं, जीवन छुपा ही रहता है। जीवन को जीवन मानने की आवश्यकता है। ऐसा होने पर धीरे धीरे प्रमाणित होना बनता है। हमारे विचार , इच्छा, संकल्प की तुष्टि और प्रमाण का पहचान - इस ढंग से हम कार्य करना शुरू करते हैं, तब जीवन में अर्थ-बोध होना सहज होता है। हमारे सारे सोच-विचार को इसमें लगा देते हैं, तो अनुभव होने की सम्भावना बन जाती है।
मुझमें आशा की तुष्टि चाहिऐ। इस तुष्टि को क्या नाम दिया जाये? नाम एक ही होता है - समाधान। मन में समाधान हो जाये! हर विचार में समाधान प्रकट हो जाये। हर इच्छा में समाधान समा जाये। हर संकल्प में समाधान स्पष्ट हो जाये। ऐसे स्थिति में हम पूरा का पूरा समाधान के योग्य हो जाते हैं। अनुभव मूलक विधि से अभिव्यक्ति इतना ही होता है।
अर्थ के साथ तैनात होने पर हमको बोध तुरंत ही होता है। तत्काल हमें चित्त में साक्षात्कार की तुष्टि हो जाती है। फलस्वरूप अनुभव हो जाता है - इतनी ही बात है। अनुभव के बाद हम कहीं रुकने वाले नहीं हैं। यह किसी दूसरे जोड़ जुगाड़ से नहीं होता।
सभी लोग शब्दों के रुप में ही प्रकट होंगे। उसके अर्थ को हर व्यक्ति समझता है। अर्थ को समझना हर व्यक्ति के बलबूते का है। अर्थ ही वस्तु है। वस्तु ही अर्थ है। सम्पूर्ण वस्तु अस्तित्व में है। सम्पूर्ण अस्तित्व सह-अस्तित्व स्वरूप में है। यह सम्पूर्ण अस्तित्व चार अवस्थाओं के रुप में प्रकट है। सम्पूर्ण वस्तु का नाम है। वह नाम हम सुनते हैं। नाम सुनकर अस्तित्व में वस्तु को पहचानना है - इतना ही है।
मानव ने ही हर वस्तु का नामकरण किया। नाम से हर वस्तु का पहचान होता है। यह प्रक्रिया हर व्यक्ति में निहित है। केवल इस प्रक्रिया को प्रयोग करने की बात है। संवेदनशीलता के लिए प्रयोग किया - सफल हुए। अब संज्ञानशीलता के लिए इसका प्रयोग करना है - और सफल होना है। इतनी ही बात है।
संवेदनशीलता से हम सफल होंगे या संज्ञानशीलता से - पहले इसको भी तय कर लो! संज्ञानशीलता के लिए झकमारी है। संवेदनशीलता से अपराध-मुक्त होना बनता नहीं है। अपना-पराया से मुक्त होना बनेगा नहीं।
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६)
मुझमें आशा की तुष्टि चाहिऐ। इस तुष्टि को क्या नाम दिया जाये? नाम एक ही होता है - समाधान। मन में समाधान हो जाये! हर विचार में समाधान प्रकट हो जाये। हर इच्छा में समाधान समा जाये। हर संकल्प में समाधान स्पष्ट हो जाये। ऐसे स्थिति में हम पूरा का पूरा समाधान के योग्य हो जाते हैं। अनुभव मूलक विधि से अभिव्यक्ति इतना ही होता है।
अर्थ के साथ तैनात होने पर हमको बोध तुरंत ही होता है। तत्काल हमें चित्त में साक्षात्कार की तुष्टि हो जाती है। फलस्वरूप अनुभव हो जाता है - इतनी ही बात है। अनुभव के बाद हम कहीं रुकने वाले नहीं हैं। यह किसी दूसरे जोड़ जुगाड़ से नहीं होता।
सभी लोग शब्दों के रुप में ही प्रकट होंगे। उसके अर्थ को हर व्यक्ति समझता है। अर्थ को समझना हर व्यक्ति के बलबूते का है। अर्थ ही वस्तु है। वस्तु ही अर्थ है। सम्पूर्ण वस्तु अस्तित्व में है। सम्पूर्ण अस्तित्व सह-अस्तित्व स्वरूप में है। यह सम्पूर्ण अस्तित्व चार अवस्थाओं के रुप में प्रकट है। सम्पूर्ण वस्तु का नाम है। वह नाम हम सुनते हैं। नाम सुनकर अस्तित्व में वस्तु को पहचानना है - इतना ही है।
मानव ने ही हर वस्तु का नामकरण किया। नाम से हर वस्तु का पहचान होता है। यह प्रक्रिया हर व्यक्ति में निहित है। केवल इस प्रक्रिया को प्रयोग करने की बात है। संवेदनशीलता के लिए प्रयोग किया - सफल हुए। अब संज्ञानशीलता के लिए इसका प्रयोग करना है - और सफल होना है। इतनी ही बात है।
संवेदनशीलता से हम सफल होंगे या संज्ञानशीलता से - पहले इसको भी तय कर लो! संज्ञानशीलता के लिए झकमारी है। संवेदनशीलता से अपराध-मुक्त होना बनता नहीं है। अपना-पराया से मुक्त होना बनेगा नहीं।
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६)
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