"सुनना भाषा है।
समझना अर्थ है।
अर्थ अस्तित्व में वस्तु है।
वस्तु समझ में आता है - तो हम अर्थ समझते हैं।
समझ जो है - वह अनुभव है।
शब्द अनुभव नहीं है।
कई विधियों से हम छूट छूट के चलते रहे, उनको जोड़ने की विधि अनुभव ही है।
वह विधि है - अस्तित्व में वस्तु के रुप में अनुभव करना, प्रमाणित करना - इतना ही है।
प्रमाणित करने में मानवीयता पूर्ण आचरण आता है। आचरण आने से व्यवस्था में जीना होता है।
समग्र व्यवस्था में जीने का सूत्र बनता है।
हम जितना जीते हैं - उसके आगे का सूत्र अपने आप जीवन से निकलता ही जा रहा है।
सर्वतोमुखी समाधान को मनः स्वस्थता के रुप में मैंने अनुभव किया है। "
श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६)
समझना अर्थ है।
अर्थ अस्तित्व में वस्तु है।
वस्तु समझ में आता है - तो हम अर्थ समझते हैं।
समझ जो है - वह अनुभव है।
शब्द अनुभव नहीं है।
कई विधियों से हम छूट छूट के चलते रहे, उनको जोड़ने की विधि अनुभव ही है।
वह विधि है - अस्तित्व में वस्तु के रुप में अनुभव करना, प्रमाणित करना - इतना ही है।
प्रमाणित करने में मानवीयता पूर्ण आचरण आता है। आचरण आने से व्यवस्था में जीना होता है।
समग्र व्यवस्था में जीने का सूत्र बनता है।
हम जितना जीते हैं - उसके आगे का सूत्र अपने आप जीवन से निकलता ही जा रहा है।
सर्वतोमुखी समाधान को मनः स्वस्थता के रुप में मैंने अनुभव किया है। "
श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६)
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