प्रश्न: अभी परम्परा में साधु लोगों के बारे में आपका क्या कहना है?
उत्तर: साधु लोगों की सेवा करने वाले सभी व्यापारी हैं. उन्ही के संरक्षण में वे रहते हैं. जहाँ साधु लोग रहना चाहते हैं, उनके लिए वहां व्यापारी लोग रहने-खाने की व्यवस्था बना देते हैं. इन स्थानों को विहार कहते हैं. कुछ संस्थाओं में साधुओं के ये विहार राजा-महाराजाओं के महलों से ज्यादा भव्य हैं!
मूल में इनकी यह मान्यता है कि संसार "टेढ़ा" है. "टेढ़ा" मतलब - स्वार्थी, पापी और अज्ञानी है. आदर्शवाद में संसार को त्याग करने के सन्देश का आधार यहीं से है. अज्ञानी को ज्ञानी बनाने के लिए, स्वार्थी को परमार्थी बनाने के लिए, पापी को तारने के लिए धर्म संस्थाओं के करो-न करो के आदेश हैं. हर समुदाय में: जिसके पास कुछ है, उसको स्वार्थी बताया। जिसके पास कुछ भी नहीं है, या बहुत कम है - उसको अज्ञानी बताया। साधुओं के अलावा बाकी सबको पापी बताया।
- श्रद्धेय ए नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००७, अमरकंटक)
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