प्रश्न: क्या अनुभव क्रमिक होता है या एक साथ होता है?
अनुभव एक साथ होता है. साक्षात्कार क्रमिक होता है. बोध सम्पूर्णता का होता है. सम्पूर्णता जब समझ में आता है तो बोध होता है. बोध के तुरंत बाद अनुभव होता है. अभी आदमी सुनता है, बोध हो गया मानता है - पर बोध हुआ नहीं रहता. क्रमिकता साक्षात्कार में है. सारा अध्ययन साक्षात्कार है. उसके बाद बोध, बोध के बाद अनुभव. अनुभव जानने-मानने का तृप्ति बिंदु है. प्रमाण विधि से अनुभव की पुष्टि होती रहती है. इस ढंग से मानव में तृप्ति की निरंतरता बनी रहती है.
एक साथ सभी कुछ समझ में आ जाना किसी भी विधि से नहीं होगा. मेरी विधि (साधना-समाधि-संयम विधि) में भी नहीं ! एक दिन अचानक मुझे अनुभव हो गया हो, ऐसा कुछ भी नहीं है. दो वर्ष मैंने संयम में अध्ययन किया है. वह क्रमिक ही था. इसी आधार पर मैं कह रहा हूँ, हर व्यक्ति अध्ययन कर सकता है.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (सितम्बर २००८, अमरकंटक)
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