"शुभ को चाहते रहे, पर कर नहीं पाए"
"शुभ को चाहते रहे, करने की जगह में अभी आये नहीं हैं, पर शुभ के लिए सहमत हैं"
"शुभ को चाहते हैं, शुभ का रास्ता खोज रहे हैं"
आप इसमें से कहीं खड़े हैं.
आप ऐसे व्यक्ति के सम्मुख बैठे हो जो शुभ का रास्ता पा गया है.
मानव शुभ को चाहता है, मेरे अनुसार! शुभ के लिए निश्चित मार्ग नहीं था, वह अब आ गया है. मानव का इसे स्वीकार होना स्वाभाविक है. इस ढंग से मानव चेतना के स्थापित होने की सम्भावना है. मानव चेतना के बिना मानव का व्यवस्था में जीना बनता ही नहीं है. हर मानव समाधान-समृद्धि पूर्वक जीना चाहता है, यह जीव चेतना में पूरा होगा ही नहीं. मानव चेतना में यह पूरा होता है.
- श्रद्धेय बाबा नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००८, अमरकंटक)
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