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Friday, September 11, 2020

ज्ञान विवेक विज्ञान

ज्ञान है - जीवन ज्ञान, सहअस्तित्व दर्शन ज्ञान और मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान.  इसका सूचना आपको हो गया है, इसके अध्ययन में हम चल ही रहे हैं.  


ज्ञान के सहमति में विवेक होता है, जो विवेचना है.  विचार स्वरूप में विवेचना है.  विश्लेषण के आधार पर विचार का निश्चयन होना विवेक है.  तीन निश्चयन होते हैं - (१) शरीर का नश्वरत्व, (२) जीवन का अमरत्व, (३) व्यवहार के नियम 


उसके बाद विज्ञान में कालवादी, क्रियावादी, निर्णयवादी ज्ञान है.  काल नित्य वर्तमान ही है.  भूत और भविष्य वर्तमान का ही नाम है.  किसी क्रिया की अवधि के आधार पर हम भूत और भविष्य नाम देते हैं.  क्रिया निरंतर है - इसलिए वर्तमान निरंतर है.  जीवन मूल्य (सुख, शान्ति, संतोष, आनंद) और मानव लक्ष्य (समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व) के अर्थ में  निर्णय लेने की क्रिया निर्णयवादी ज्ञान है.  लक्ष्य के प्रति दिशा निर्धारण की क्रिया विज्ञान है.  


आज जो भौतिकवादी विचार प्रचलित है, उससे यह कितना दूर है - आप सोच लो!  विज्ञान को "सच्चाई" से कोई लेन-देन ही नहीं है, वह जो यंत्र बताता है उसको सच मानता है.  भौतिकवादी विधि से अपराध प्रवृत्ति में जाने से सच्चाइयाँ दूर हो गए.  आदर्शवादी विधि से वेद विचार में "सच्चाई" पास लगता था - हमको प्रयत्न करना है, साधना करना है, तो सच्चाई को पा लेंगे - यह सब बात थी.  अब भौतिकवादी विचार के चलते सच्चाई की कल्पना ही दूर हो गयी!  अब यही रास्ता बनता है कि सच्चाइयों को पूरा अध्ययनगम्य ही करा दिया जाए.  साधना पूर्वक जो सच्चाई को पाना था, अध्ययन पूर्वक उसको पाने की बात कर दी.  मानव लक्ष्य और जीवन मूल्य स्वाभाविक रूप से सर्वसम्मत हैं.  सर्वसम्मत उपलब्धियों की "अपेक्षा" होना जीवन सहज है.  यह अपेक्षा जीव-जानवरों में नहीं है, मानव में है - क्योंकि मानव ज्ञानावस्था में है.  मानव लक्ष्य और जीवन मूल्य का पूरा होना ज्ञान का प्रमाण है.


समाधान = सुख

समाधान, समृद्धि = सुख, शान्ति 

समाधान, समृद्धि, अभय = सुख, शान्ति, संतोष

समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व = सुख, शान्ति, संतोष, आनंद 


जीवन में सुख-शांति-संतोष-आनंद मानव परम्परा में समाधान-समृद्धि-अभय-सहअस्तित्व स्वरूप में प्रमाणित होता है.  इस तरह आदमी जो व्यक्तिवाद के लिए जो shell बना कर छुपने की जगह बनाता रहता था, वह छुपने की जगह ख़त्म हो गयी.  व्यक्ति का "वैभव" होता है. व्यक्ति के "वाद" की आवश्यकता नहीं है.  व्यक्ति का वैभव सुख-शांति-संतोष-आनंद है, जिसका क्रिया रूप है - समाधान-समृद्धि-अभय-सहअस्तित्व.


- श्रद्धेय नागराज जी के साथ सम्वाद पर आधारित (जनवरी २००८, अमरकंटक)

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