अनुसंधान पूर्वक श्रद्धेय ए नागराज जी (बाबा जी) ने मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद (बनाम अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन) को आदर्शवाद और भौतिकवाद के “विकल्प” के स्वरूप में प्रस्तुत किया. इस दर्शन के लोकव्यापीकरण के लिए तीन योजनाओं को भी प्रस्तुत किया, जिनके शीर्षक निम्न अनुसार हैं.
(१) जीवन विद्या योजना
(२) शिक्षा का मानवीयकरण योजना
(३) परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था योजना
ये तीन योजनायें हैं, और यही तीन योजनायें हैं. मध्यस्थ दर्शन से जुड़े सभी कार्यक्रम इन तीन योजनाओं से सम्बद्ध हैं. इन योजनाओं के क्रियान्वयन का क्रम है - पहले जीवन विद्या योजना है, फिर शिक्षा का मानवीयकरण योजना है, फिर परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था योजना है. लेकिन इन योजनाओं के सूत्रपात का क्रम इससे उल्टा है. यह भेद समझना आवश्यक है.
बाबा जी साधना-समाधि-संयम पूर्वक अनुभव सम्पन्न हुए और मानवीयता पूर्ण आचरण में स्थित हुए, और इसके बाद समाधान-समृद्धि पूर्वक जीने के स्वरूप में अपने परिवार को स्थापित किये – और अपने जीने को ही “प्रमाण” के स्वरूप में घोषित किया और प्रस्तुत किया. इस तरह परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था योजना का सूत्रपात सबसे पहले हुआ. मानवीयता पूर्ण आचरण का ही विस्तार है - दस सोपानीय परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था. बाबा जी ने स्वयं उसके सूत्र-व्याख्या स्वरूप में शरीर यात्रा पर्यंत जिया. यह आधार या reference है - मध्यस्थ दर्शन पर आधारित स्वराज्य व्यवस्था के किसी भी कार्यक्रम का.
उसके बाद उन्होंने अनुसंधान पूर्वक प्राप्त समझ/ज्ञान/जानकारी का भाषाकरण शुरू किया. इस तरह मानवीयता पूर्ण आचरण के साथ भाषा/परिभाषा जुडी. यह दूसरे लोगों के लिए अध्ययन की वस्तु बनी. इस तरह उन्होंने अनुभवमूलक विधि से अनुभवगामी पद्दति को तैयार किया. पूरा वांग्मय दर्शन, वाद, शास्त्र, संविधान को लिखा गया. साथ में परिभाषा संहिता को जोड़ा गया – इसमें शब्द परंपरा से लिए गए लेकिन उनका अर्थ उन्होंने इस विकल्प के अनुसार परिभाषित किया. इस पूरे वांग्मय को “चेतना विकास - मूल्य शिक्षा” की वस्तु कहा और बताया कि यह मध्यस्थ दर्शन पर आधारित विकल्पात्मक शिक्षा की मूल वस्तु है. उनके साथ जिज्ञासु जो जुड़े उन्होंने उनको इसका अध्ययन कराना शुरू कर दिया. इस तरह शिक्षा के मानवीयकरण योजना के स्वरूप का सूत्र-पात हुआ. आगे चल के उन्होंने अभ्युदय संस्थान अछोटी में अध्ययन शिविरों की शुरुआत कर दी, जो बाद में अन्य स्थानों पर भी शुरू हो गए. इस तरह यह आधार या reference बना - मध्यस्थ दर्शन पर आधारित किसी भी शिक्षा के कार्यक्रम का.
तीसरी स्थिति में उन्होंने अब जन संपर्क शुरू किया. यह बात हर मानव, चाहे वह ज्ञानी हो, विज्ञानी हो, अज्ञानी हो – उसको संप्रेषित होती है या नहीं? उन्होंने स्वयं जीवन विद्या शिविरों के प्रबोधन की शुरुआत की. “जीवन विद्या – एक परिचय” पुस्तक उनके द्वारा प्रबोधित एक शिविर ही लिपिबद्ध है. इस तरह उन्होंने जीवन विद्या योजना का सूत्रपात किया. साथ ही उन्होंने “जीवन विद्या – अध्ययन बिंदु” नाम की पुस्तिका लिखी – जीवन विद्या के प्रबोधकों के मार्गदर्शन के लिए. इस तरह यह आधार या reference बना - मध्यस्थ दर्शन पर आधारित किसी भी जन संपर्क कार्यक्रम का.
दर्शन के लोकव्यापीकरण के ये आधार या reference अनुभव मूलक विधि से स्थापित किये गए हैं. इनकी उपेक्षा या अवहेलना करके हम यदि कुछ भी कार्यक्रम अपने मन से बनाते हैं तो उसका असफल होना निश्चित ही है. दूसरी ओर यदि हम इन आधारों पर अपने कार्यक्रमों को खड़ा करते हैं तो अखंड समाज सार्वभौम व्यवस्था का साकार होना निश्चित ही है.
इस तरह संक्षेप में –
परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था योजना की शुरुआत = मानवीयता पूर्ण आचरण
शिक्षा का मानवीयकरण योजना की शुरुआत = मानवीयता पूर्ण आचरण + भाषा
जीवन विद्या योजना की शुरुआत = मानवीयता पूर्ण आचरण + भाषा + जनसंपर्क
लोकव्यापीकरण में तीनो योजनाओं का अपना महत्त्व है, और ये तीनो योजनायें साथ-साथ हैं, इनकी एक-दूसरे पर निर्भरता है. इसमें केंद्र में है - परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था योजना. इसी व्यवस्था के अंतर्गत या इस व्यवस्था के आश्रय में मानवीयकृत शिक्षा है, जहाँ शोध होगा और उस शोध की उपलब्धियां जीवन विद्या योजना द्वारा जनसंपर्क पूर्वक जन सामान्य तक पहुंचेगी. जीवन विद्या योजना अपने में कोई स्वतन्त्र योजना नहीं है – यह अन्य दोनों योजनाओं के आश्रय में है.
व्यवस्था आचरण का ही फैलाव है. व्यवस्था और शिक्षा अन्योन्याश्रित है. व्यवस्था के अंतर्गत शिक्षा है, और शिक्षा व्यवस्था के लिए स्त्रोत है. यहाँ इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि यह विकल्पात्मक शिक्षा और विकल्पात्मक व्यवस्था की बात है न कि उसकी जो अभी संसार में व्यवस्था और शिक्षा के नाम पर चल रहा है. दस सोपानीय परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था के अंतर्गत ही इस विकल्पात्मक शिक्षा के सोपानों की भी पहचान है. जीवन विद्या योजना एक तरह से इस विकल्पात्मक शिक्षा और व्यवस्था के लिए एक induction program है – जिसमे दर्शन की अवधारणाओं और इस विकल्पात्मक शिक्षा और व्यवस्था का एक परिचय है. जीवन विद्या शिविर का प्रयोजन है – नए संपर्क में आये लोगों को मध्यस्थ दर्शन के अध्ययन से जोड़ना. मध्यस्थ दर्शन का अध्ययन इसके अनुरूप जीने के वातावरण में संभव है. दस सोपानीय व्यवस्था के अंतर्गत जीने का अभ्यास करते हुए ही मध्यस्थ दर्शन का अध्ययन संभव है.
- राकेश गुप्ता (मध्यस्थ दर्शन के अध्ययन क्रम में प्रस्तुत. इसमें सुधार की सम्भावना है - आपके सुझाव अपेक्षित हैं)
(१) जीवन विद्या योजना
(२) शिक्षा का मानवीयकरण योजना
(३) परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था योजना
ये तीन योजनायें हैं, और यही तीन योजनायें हैं. मध्यस्थ दर्शन से जुड़े सभी कार्यक्रम इन तीन योजनाओं से सम्बद्ध हैं. इन योजनाओं के क्रियान्वयन का क्रम है - पहले जीवन विद्या योजना है, फिर शिक्षा का मानवीयकरण योजना है, फिर परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था योजना है. लेकिन इन योजनाओं के सूत्रपात का क्रम इससे उल्टा है. यह भेद समझना आवश्यक है.
बाबा जी साधना-समाधि-संयम पूर्वक अनुभव सम्पन्न हुए और मानवीयता पूर्ण आचरण में स्थित हुए, और इसके बाद समाधान-समृद्धि पूर्वक जीने के स्वरूप में अपने परिवार को स्थापित किये – और अपने जीने को ही “प्रमाण” के स्वरूप में घोषित किया और प्रस्तुत किया. इस तरह परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था योजना का सूत्रपात सबसे पहले हुआ. मानवीयता पूर्ण आचरण का ही विस्तार है - दस सोपानीय परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था. बाबा जी ने स्वयं उसके सूत्र-व्याख्या स्वरूप में शरीर यात्रा पर्यंत जिया. यह आधार या reference है - मध्यस्थ दर्शन पर आधारित स्वराज्य व्यवस्था के किसी भी कार्यक्रम का.
उसके बाद उन्होंने अनुसंधान पूर्वक प्राप्त समझ/ज्ञान/जानकारी का भाषाकरण शुरू किया. इस तरह मानवीयता पूर्ण आचरण के साथ भाषा/परिभाषा जुडी. यह दूसरे लोगों के लिए अध्ययन की वस्तु बनी. इस तरह उन्होंने अनुभवमूलक विधि से अनुभवगामी पद्दति को तैयार किया. पूरा वांग्मय दर्शन, वाद, शास्त्र, संविधान को लिखा गया. साथ में परिभाषा संहिता को जोड़ा गया – इसमें शब्द परंपरा से लिए गए लेकिन उनका अर्थ उन्होंने इस विकल्प के अनुसार परिभाषित किया. इस पूरे वांग्मय को “चेतना विकास - मूल्य शिक्षा” की वस्तु कहा और बताया कि यह मध्यस्थ दर्शन पर आधारित विकल्पात्मक शिक्षा की मूल वस्तु है. उनके साथ जिज्ञासु जो जुड़े उन्होंने उनको इसका अध्ययन कराना शुरू कर दिया. इस तरह शिक्षा के मानवीयकरण योजना के स्वरूप का सूत्र-पात हुआ. आगे चल के उन्होंने अभ्युदय संस्थान अछोटी में अध्ययन शिविरों की शुरुआत कर दी, जो बाद में अन्य स्थानों पर भी शुरू हो गए. इस तरह यह आधार या reference बना - मध्यस्थ दर्शन पर आधारित किसी भी शिक्षा के कार्यक्रम का.
तीसरी स्थिति में उन्होंने अब जन संपर्क शुरू किया. यह बात हर मानव, चाहे वह ज्ञानी हो, विज्ञानी हो, अज्ञानी हो – उसको संप्रेषित होती है या नहीं? उन्होंने स्वयं जीवन विद्या शिविरों के प्रबोधन की शुरुआत की. “जीवन विद्या – एक परिचय” पुस्तक उनके द्वारा प्रबोधित एक शिविर ही लिपिबद्ध है. इस तरह उन्होंने जीवन विद्या योजना का सूत्रपात किया. साथ ही उन्होंने “जीवन विद्या – अध्ययन बिंदु” नाम की पुस्तिका लिखी – जीवन विद्या के प्रबोधकों के मार्गदर्शन के लिए. इस तरह यह आधार या reference बना - मध्यस्थ दर्शन पर आधारित किसी भी जन संपर्क कार्यक्रम का.
दर्शन के लोकव्यापीकरण के ये आधार या reference अनुभव मूलक विधि से स्थापित किये गए हैं. इनकी उपेक्षा या अवहेलना करके हम यदि कुछ भी कार्यक्रम अपने मन से बनाते हैं तो उसका असफल होना निश्चित ही है. दूसरी ओर यदि हम इन आधारों पर अपने कार्यक्रमों को खड़ा करते हैं तो अखंड समाज सार्वभौम व्यवस्था का साकार होना निश्चित ही है.
इस तरह संक्षेप में –
परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था योजना की शुरुआत = मानवीयता पूर्ण आचरण
शिक्षा का मानवीयकरण योजना की शुरुआत = मानवीयता पूर्ण आचरण + भाषा
जीवन विद्या योजना की शुरुआत = मानवीयता पूर्ण आचरण + भाषा + जनसंपर्क
लोकव्यापीकरण में तीनो योजनाओं का अपना महत्त्व है, और ये तीनो योजनायें साथ-साथ हैं, इनकी एक-दूसरे पर निर्भरता है. इसमें केंद्र में है - परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था योजना. इसी व्यवस्था के अंतर्गत या इस व्यवस्था के आश्रय में मानवीयकृत शिक्षा है, जहाँ शोध होगा और उस शोध की उपलब्धियां जीवन विद्या योजना द्वारा जनसंपर्क पूर्वक जन सामान्य तक पहुंचेगी. जीवन विद्या योजना अपने में कोई स्वतन्त्र योजना नहीं है – यह अन्य दोनों योजनाओं के आश्रय में है.
व्यवस्था आचरण का ही फैलाव है. व्यवस्था और शिक्षा अन्योन्याश्रित है. व्यवस्था के अंतर्गत शिक्षा है, और शिक्षा व्यवस्था के लिए स्त्रोत है. यहाँ इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि यह विकल्पात्मक शिक्षा और विकल्पात्मक व्यवस्था की बात है न कि उसकी जो अभी संसार में व्यवस्था और शिक्षा के नाम पर चल रहा है. दस सोपानीय परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था के अंतर्गत ही इस विकल्पात्मक शिक्षा के सोपानों की भी पहचान है. जीवन विद्या योजना एक तरह से इस विकल्पात्मक शिक्षा और व्यवस्था के लिए एक induction program है – जिसमे दर्शन की अवधारणाओं और इस विकल्पात्मक शिक्षा और व्यवस्था का एक परिचय है. जीवन विद्या शिविर का प्रयोजन है – नए संपर्क में आये लोगों को मध्यस्थ दर्शन के अध्ययन से जोड़ना. मध्यस्थ दर्शन का अध्ययन इसके अनुरूप जीने के वातावरण में संभव है. दस सोपानीय व्यवस्था के अंतर्गत जीने का अभ्यास करते हुए ही मध्यस्थ दर्शन का अध्ययन संभव है.
- राकेश गुप्ता (मध्यस्थ दर्शन के अध्ययन क्रम में प्रस्तुत. इसमें सुधार की सम्भावना है - आपके सुझाव अपेक्षित हैं)