ANNOUNCEMENTS



Tuesday, July 3, 2018

क्रिया को अलग करके अनुभव किया ही नहीं जा सकता.



प्रश्न:  क्या यह कहना सही होगा कि जागृति का मूल मुद्दा व्यापकता में अनुभव है?

उत्तर:  व्यापकता में सम्पूर्ण एक एक के सहअस्तित्व में होने का अनुभव है.  व्यापकता में हम तो हैं ही, चारों अवस्थाएं भी व्यापकता में हैं.  यही अनुभूति का सम्पूर्ण वस्तु है.  व्यापकता में अनुभव किया का मतलब है व्यापकता में सम्पूर्ण अस्तित्व का अनुभव किया.  चारो अवस्थाओं का अनुभव किया.  क्रिया को अलग करके अनुभव किया ही नहीं जा सकता.  यदि क्रिया को भुलावा दिया तो हमारा कोई कार्यक्रम ही नहीं है.  क्रिया को भुलावा देने का मतलब हम भी क्रिया से शून्य हो गए.  उसी का नाम है समाधि - या आशा, विचार, इच्छा का चुप हो जाना.

कौन कितने जन्मों में समाधि को प्राप्त करेगा इसको कहा नहीं जा सकता.  किन्तु अध्ययन विधि से एक ही शरीर यात्रा में मानव अपनी समझ को पूर्ण कर सकता है, प्रमाणित कर सकता है, जी सकता है.

आप भले ही इस प्रस्ताव को "अंतिम बात" न मानो.  आगे और भी अनुसंधान हो सकता है ऐसा मान लो.  किन्तु इस अनुसंधान से जो ज्ञात हुआ उसको हृदयंगम करने के बाद ही तो आप इसके आगे कुछ करोगे?  जैसे - मैंने वैदिक विचार को पूरा हृदयंगम किया, फिर उसमे छेद दिखा, उसको पूरा करने के लिए मैंने अनुसन्धान किया.  मेरे प्रस्तुति में कोई छेद दिखता है तो उसको भरने का अर्हता आगे पुण्यशील व्यक्तियों में होगा ही.

आगे की पीढ़ी हमसे अच्छे ही होंगे.  यह केवल उत्साहित करने के लिए नहीं कह रहे हैं, यह सच्चाई भी है.

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (मार्च २००८, अमरकंटक)

स्वयंस्फूर्त और क्रमागत प्रकटन



संयम के लिए समाधि आवश्यक है.  समाधि के बिना संयम होता नहीं है.

प्रश्न: यदि धरती पर समाधि-संयम की विधि ही न विकसित हुई होती तो?

उत्तर: धरती पर मानव क्रमागत विधि से प्रकट हुआ है.  मानव के प्रकट होने के बाद धरती पर क्रमागत विधि से समाधि-संयम विधि का प्रकट होना स्वयंस्फूर्त आता ही है.  मैं जो अभी प्रकट कर रहा हूँ वह उसके आगे की कड़ी के रूप में स्वयंस्फूर्त है.  सच्चाई के प्रति जीवन में प्यास बना ही रहता है.  आशा के आधार पर मानव पहले जीना शुरू करता है, फिर विचार के आधार पर, फिर इच्छा के आधार पर.  इतने में मनाकार को साकार करना हो गया.  पर उससे तृप्ति नहीं मिला.  तृप्ति नहीं मिलने पर दर्द बढ़ना शुरू हुआ.  फिर उससे आगे की बात हुआ.

पहले भी समाधि धरती पर कई लोगों को हुआ.  किन्तु संयम हुआ जिसके फलन में मानव को जिम्मेदार बनाया हो, ऐसा नहीं हुआ.  यदि संयम किन्ही को हुआ भी हो तो उन्होंने ईश्वर को जिम्मेवार बताया, मानव को जिम्मेवार नहीं बताया और बनाया.  यह गलत निकल गया.  इसलिए अपनी बात को विकल्प स्वरूप में प्रस्तुत किया.  पुराना जो लिखा है उसको व्याख्या करने मैं नहीं गया.


- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (मार्च २००८, अमरकंटक)