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Wednesday, May 11, 2016

बाध्यता, जिज्ञासा और विवशता

"मानवीय गुणों के लिए मनुष्य बाध्य है.  दिव्य गुणों के लिए जिज्ञासु एवं अमानवीय गुणों के लिए विवश है.  बाध्यता कर्त्तव्य और अधिकार में, जिज्ञासा अभ्युदय में, विवशता दास्यता में ख्यात है." - श्री ए नागराज


5 comments:

Roshani said...

भैया जी समझने के लिए थोड़ा और व्याख्या की आवश्यकता लग रही है|कृपया थोड़ा और स्पष्ट करें|
सादर नमन
रोशनी

Rakesh Gupta said...

मानवीय गुणों के लिए मनुष्य बाध्य है - इसका मतलब है, हम हर स्थिति परिस्थिति में एक दूसरे से मानवीय व्यवहार की ही अपेक्षा कर रहे होते हैं. चाहे घर-परिवार में हो या काम-काज में. यह बाध्यता "ख्यात" कब होगी? जब यह मानवीयता की समझ हासिल होने के बाद परस्परता में "कर्त्तव्य" और "अधिकार" के निर्वाह स्वरूप में आ जाएगी।

दिव्यता के प्रति मनुष्य जिज्ञासु रहा ही है - जबकि दिव्यता अभी तक रहस्यमय रहा है. दिव्यता "ख्यात" होती है या उसका "यश" होता है - जब कोई व्यक्ति हर मोड़ मुद्दे पर समाधान देने लगता है. इसको देव मानवीयता भी कहा है.

अमानवीय गुण दीनता, हीनता और क्रूरता के स्वरूप में होते हैं. इनमे मानव विवश होता है। अमानवीयता को बाहर से नियंत्रित करना ही पड़ता है या उसको दास बनाना ही पड़ता है. राक्षस-मानव पशु-मानव को दास बनाता है. मानव, देव-मानव, दिव्य-मानव भी अमानव को नियंत्रित करता है, उसको अध्ययन कराने के लिए, शिक्षा देने के लिए. इस तरह अध्ययन में संलग्न होना अमानवीयता की सर्वश्रेष्ठ स्थिति है! क्योंकि इसी के बाद मानवीयता है.

Roshani said...

धन्यवाद भैया जी|
"कर्त्तव्य" और "अधिकार" पर भी थोड़ा प्रकाश डालें भैया जी|
जहां तक मुझे सूचना है कर्तव्य अर्थात अपने संबंधियों के प्रति जो भी कार्य व्यवहार करते हैं व सेवा भावना| जैसे माता जी ने अपने बच्चों के लिए प्रेम से पौष्टिक भोजन बनाया| और एक संतान द्वारा अपने बुजुर्ग माता- पिता की सेवा|

भैया जी "अधिकार" का तात्पर्य किससे से हैं?
आभार
रोशनी

Rakesh Gupta said...

कर्त्तव्य - प्रत्येक परस्परता में अपेक्षित मूल्यों का निर्वाह ( यहाँ लेना और देना दोनों हो सकता है. जैसे - पड़ोसी बीमार हो तो उसकी उदारता/दया पूर्वक मदद करना हमारा कर्त्तव्य है, और उस मदद को कृतज्ञता पूर्वक लेना उसका कर्त्तव्य है. हम बीमार हों तो पड़ोसी से मदद लेना हमारा कर्त्तव्य है, मदद करना उसका कर्त्तव्य है. )

दायित्व - जिसके लिए हम दायी हैं, या जो हम ही को देना है, जिसकी हमने जिम्मेदारी ले ली है. (जैसे - माँ को बच्चे को पोषण देना ही है, गुरु को शिक्षा देना ही है, पिता को संरक्षण देना ही है)

अधिकार - पद के अनुसार दायित्व निर्वाह कर पाना (यहाँ पद माता, पिता, गुरु आदि का भी हो सकता है या व्यवस्था के अर्थ में भी पद हो सकते हैं - जैसे उत्पादन समिति में, ग्राम-मोहल्ला सभा में)

Roshani said...

काफी स्पष्टता बनी भैया| "दायित्व" शब्द का अर्थ भी और स्पष्ट हुआ|
आभार
रोशनी