"इंद्रियों का क्रियाकलाप जीवन के अनुग्रह अर्थात शरीर की जीवंतता पूर्वक होता है, लेकिन शरीर को ही जीवन मान लेने के भ्रमवश इंद्रिय सन्निकर्षात्मक कार्यों को ही महत्त्वपूर्ण मान लेने और सुख तथा सौंदर्य का आधार मान लेने से जीवन की महिमा और प्रयोजनों को पाना संभव नहीं हो पाया। जबकि मनुष्य के लिए आहार, विहार, व्यवहार और व्यवस्था में व्यक्तित्व का सौंदर्य मूल्यांकित होता है. व्यक्तित्व सौंदर्य का आधार है. सौंदर्य के साथ सुख, सुख के साथ समाधान-समृद्धि, समाधान-समृद्धि के साथ व्यक्तित्व, और व्यक्तित्व के साथ नित्य सौंदर्य है." - श्री ए नागराज
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