जागृति जीवन सहज लक्ष्य है. जागृति-क्रम ही साधना है. "जानना, मानना, पहचानना और निर्वाह करना" जीवन सहज प्रकाशन है. जीवन में नित्य आचरण रूपी अथवा कार्य रूपी गतिविधियों को जानना-मानना जागृति है. जीवन में, से, के लिए सतत क्रियाशीलता प्रत्येक मनुष्य में प्रमाणित है. जैसा - (१) चयन-आस्वादन, (२) विश्लेषण और तुलन, (३) चित्रण और चिंतन, (४) संकल्प और बोध, (५) प्रामाणिकता और अनुभूति। ये जीवन सहज क्रियाएँ हैं. ये सब क्रम से मन, वृत्ति, चित्त, बुद्धि और आत्मा में संपन्न होने वाली क्रियाएँ हैं. ये क्रम से विशाल और सहज प्रभावी हैं.
(१) मन के प्रभाव-क्षेत्र से अधिक प्रभावी वृत्ति का प्रभाव क्षेत्र है. इसलिए वृत्ति में होने वाली न्याय, धर्म, सत्य रूपी दृष्टियों से चयन-आस्वादन विश्लेषणों को तुलन करना - यह जागृति विधि साधना है. इससे मन की गतिविधियों को जानने-मानने की अर्हता स्थापित होती है.
(२) चित्त में विवेचनाओं के आधार पर वृत्ति के क्रियाकलापों को जानना-मानना जागृति विधि साधना है.
(३) चित्त के क्रियाकलापों को अवधारणाओं की रोशनी में जानना-मानना जागृति-विधि साधना है.
(४) अनुभव के प्रकाश में आत्म सहज प्रामाणिकता की कसौटी में सम्पूर्ण बोध को निरीक्षण-परीक्षण करना जागृति विधि साधना है.
आत्मा स्वयं अथवा जीवन स्वयं अस्तित्व सहज वर्तमान होने के कारण अस्तित्व में जिन-जिन अवधारणाओं को प्रामाणिकता की रोशनी में सटीक ठहराया गया है, उसे अस्तित्व सहज रूप में प्रमाणित कर लेना, अस्तित्व में अनुभूति का तात्पर्य है. या अस्तित्व में होने वाली अनुभव क्रिया है. यह जाना-माना हुआ का तृप्ति-बिंदु ही है.
अस्तित्व में प्रत्येक एक को उसकी सम्पूर्णता के साथ जानने-मानने के तृप्ति-बिंदु का अनुभव, निरंतर अनुभव का स्त्रोत होना पाया जाता है. यही साधना और अभ्यास "जागृति विधि साधना" के नाम से जाना जाता है.
- श्री ए नागराज की डायरी से (अमरकंटक - ३० नवंबर, १९९२)
(१) मन के प्रभाव-क्षेत्र से अधिक प्रभावी वृत्ति का प्रभाव क्षेत्र है. इसलिए वृत्ति में होने वाली न्याय, धर्म, सत्य रूपी दृष्टियों से चयन-आस्वादन विश्लेषणों को तुलन करना - यह जागृति विधि साधना है. इससे मन की गतिविधियों को जानने-मानने की अर्हता स्थापित होती है.
(२) चित्त में विवेचनाओं के आधार पर वृत्ति के क्रियाकलापों को जानना-मानना जागृति विधि साधना है.
(३) चित्त के क्रियाकलापों को अवधारणाओं की रोशनी में जानना-मानना जागृति-विधि साधना है.
(४) अनुभव के प्रकाश में आत्म सहज प्रामाणिकता की कसौटी में सम्पूर्ण बोध को निरीक्षण-परीक्षण करना जागृति विधि साधना है.
आत्मा स्वयं अथवा जीवन स्वयं अस्तित्व सहज वर्तमान होने के कारण अस्तित्व में जिन-जिन अवधारणाओं को प्रामाणिकता की रोशनी में सटीक ठहराया गया है, उसे अस्तित्व सहज रूप में प्रमाणित कर लेना, अस्तित्व में अनुभूति का तात्पर्य है. या अस्तित्व में होने वाली अनुभव क्रिया है. यह जाना-माना हुआ का तृप्ति-बिंदु ही है.
अस्तित्व में प्रत्येक एक को उसकी सम्पूर्णता के साथ जानने-मानने के तृप्ति-बिंदु का अनुभव, निरंतर अनुभव का स्त्रोत होना पाया जाता है. यही साधना और अभ्यास "जागृति विधि साधना" के नाम से जाना जाता है.
- श्री ए नागराज की डायरी से (अमरकंटक - ३० नवंबर, १९९२)
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