शरीर यात्रा में "सीमित सुख" और "सीमित दुःख" को भोगा जा सकता है। शरीर यात्रा में जितना भोगा जा सके, उससे ज्यादा "सुख" या "दुःख" का कारण मानव तैयार किया हो सकता है। दो शरीर यात्राओं के बीच की अवधि का उपयोग जीवन उस शेष "सुख" या "दुःख" को भोगने के लिए करता है। अपनी "प्रवृत्ति" के अनुकूल परिस्थिति को पहचानने की बात हर जीवन में रहती है, उसके अनुसार वह अगली शरीर-यात्रा शुरू करता है।
जागृति की ओर प्रवृत्ति होने के बाद पीढी से पीढी और अच्छा होने का क्रम बन जाता है। अंततोगत्वा चेतना-विकास के दरवाजे में आ जाते हैं। एक बार चेतना विकास की स्वीकृति होने पर अगली शरीर-यात्रा में वह और पुष्ट होता है।
- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त 2006, अमरकंटक)
1 comment:
Hi Rakesh Bhai,
In one of the other videos, Baba said that in the state of smadhi , he did not have awareness of time and space. He also mentioned that situation he was in, was very much similar to the one which jeevan finds when it leaves the body( or dies ) .
Does that also mean that after jeevan leaves the body , the jeevan is unaware of time and space? It kind of makes sense to me. That may be one reason we are unable to link previous life events with current life as jeevan in between looses that link.
Please let me have your thoughts on that.
Regards,
Gopal.
Post a Comment