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Wednesday, May 2, 2012

प्रकृति में नियंत्रण


साम्य ऊर्जा (सत्ता) में ही हम (सारी प्रकृति) नियंत्रित रहते हैं.  सत्ता में घिरे रहने से सम्पूर्ण प्रकृति नियंत्रित है.  सत्ता इकाइयों को नियंत्रित “करने वाला” नहीं है.  सत्ता में इकाइयां नियंत्रित हैं.  इकाई के नियंत्रित रहने का “कारण” सत्ता है.  सत्ता में इकाइयां डूबी, भीगी और घिरी हैं.  घिरे रहने का प्रभाव है - नियंत्रण.  डूबे रहने का प्रभाव है – इकाई की कार्य-सीमा.  भीगे रहने का प्रभाव है – ऊर्जा सम्पन्नता.

सत्ता में संपृक्तता वश सम्पूर्ण प्रकृति में व्यवस्था में होने की मूल प्रवृत्ति है.  ऊर्जा सम्पन्नता के आधार पर ही जड़-प्रकृति में व्यवस्था में होने की प्रवृत्ति है.  ज्ञान सम्पन्नता के आधार पर ही चैतन्य-प्रकृति में व्यवस्था में होने की प्रवृत्ति है.  चैतन्य प्रकृति में मानव भी है.  मानव में ज्ञान सम्पन्नता का आरंभिक स्वरूप है – कल्पनाशीलता.  कल्पनाशीलता के आधार पर मानव ने अभी तक जितना भी व्यवस्था के लिए सोचा और किया वह जीव-चेतना के अंतर्गत ही रहा.  जीव-चेतना में मानव का व्यवस्था में जीना बना नहीं.  मानव के व्यवस्था में जीने के लिए समझदारी का परंपरा आवश्यक रहा.  तभी मानव एक दूसरे को समझा पायेंगे और व्यवस्था में जी पायेंगे.  दूसरा कोई रास्ता भी नहीं है.   

-    - श्री ए. नागराज के साथ संवाद के आधार पर (दिसम्बर २००८). 

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