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Monday, February 6, 2012

संयम

प्रश्न: समाधि तक पहुँचने के क्रम में आप "निषेधनी" विधि से चले - जिसमे आप सभी "गलत" पर निषेध लगाते चले गए.  समाधि में पहुँचने पर आपके आशा, विचार और इच्छा चुप हो गए, लेकिन उसमे ज्ञान नहीं हुआ.  "सही" को स्वीकारने और प्रमाणित करने के लिए आपने संयम किया.  अभी हम जो चल रहे हैं - उसमे सही के साथ साथ गलत भी हमारी कल्पना में आ जाता है.  ऐसे में हमारे लिए अनुभव तक पहुँचने का क्या उपाय है?

उत्तर:  उसी के लिए तो अध्ययन है.  "सही" बात को समझने के लिए ही अध्ययन है.  अध्ययन में "गलत" का कोई प्रस्ताव ही नहीं है.  अध्ययन विधि से एक एक मुद्दे पर तर्क समाप्त होता है.  एक मुद्दे पर तर्क समाप्त होता है, तो दूसरे मुद्दे पर तर्क समाप्त होने का आसरा बन जाता है.  ऐसे हो कर के अध्ययन पूरा होता है.  अध्ययन पूरा होना = सह-अस्तित्व अनुभव में आना.  सह-अस्तित्व में सम्पूर्ण प्रकृति अनुभव में आना.  सम्पूर्ण प्रकृति विकास-क्रम, विकास, जागृति-क्रम और जागृति स्वरूप में प्रमाणित है.  इतना समझ में आता है तो अध्ययन हुआ.  इतना ही मैंने अपने संयम में देखा है. 

प्रश्न: समाधि में आपको शरीर का अध्यास नहीं रहता था.  क्या संयम में शरीर का अध्यास होता था?

उत्तर: हाँ.   समाधि में शरीर से कोई संवेदनाओं का ज्ञान नहीं रहता.  संयम में शरीर संवेदनाओं का ज्ञान भी होता है.  जीवन की दसों क्रियाओं की अभिव्यक्ति संयम में है.  

समाधि के बाद लक्ष्य का ध्यान, जो धारणा में विस्तृत हुआ.  लक्ष्य था - अपनी जिज्ञासा का उत्तर पाना, कि "सत्य से मिथ्या कैसे पैदा हुआ?"  

- श्री ए. नागराज के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २०११, अमरकंटक) 


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