"सुविधा-संग्रह" लक्ष्य के साथ मानवीयता पूर्ण आचरण जुड़ता नहीं है। जब तक सुविधा-संग्रह लक्ष्य रहता है, तब तक "समाधान" की बात करने तक हम आ सकते हैं, समाधान आचरण में नहीं आ पाता। विचार विधि से जब समाधान-समृद्धि लक्ष्य स्वीकृत हो जाता है तो समझ आचरण में आ जाता है।
प्रश्न: विचार विधि से समाधान-समृद्धि लक्ष्य को स्वयं में स्थिर करने के लिए क्या किया जाए?
उत्तर: सुविधा-संग्रह लक्ष्य स्थिर है, या समाधान-समृद्धि लक्ष्य स्थिर है? - इस पर सोचा जाए। जो लक्ष्य "स्थिर" होगा वही मिल सकता है। यदि जो लक्ष्य ही स्थिर न हो, वह मिलेगा कैसे? इस पर सोचने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं - समाधान-समृद्धि एक स्थिर लक्ष्य है। हर मनुष्य को समाधान-समृद्धि मिल सकता है। इसके विपरीत सुविधा-संग्रह अस्थिर लक्ष्य है। कितना भी आप सुविधा-संग्रह करो - और करने की जगह बना रहता है। सुविधा-संग्रह का लक्ष्य किसी को मिल नहीं सकता।
दूसरे, "धरती बीमार हो गयी है"। इस परिस्थिति से निकलने के लिए सुविधा-संग्रह लक्ष्य के साथ चलना उचित होगा, या समाधान-समृद्धि लक्ष्य को अपनाना होगा? इस पर सोचा जाए। यह सोचने पर हम निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं, मनुष्य के सुविधा-संग्रह लक्ष्य के साथ जीने से ही यह धरती बीमार हुई।
सुविधा-संग्रह "पर-धन" के बिना हो ही नहीं सकता। "पर-धन" चरित्र से मानवीयता पूर्ण आचरण कैसे जुड़ सकता है? इस पर सोचा जाए। समाधान-समृद्धि "स्व-धन" के साथ ही होता है। स्व-धन चरित्र से ही मानवीयता पूर्ण आचरण जुड़ सकता है।
संवेदनाएं अनियंत्रित होते हुए मानवीयता पूर्ण आचरण का स्वरूप कैसे निकल सकता है? सुविधा-संग्रह लक्ष्य के साथ जीते हुए संवेदनाएं नियंत्रित होने का कोई आधार ही नहीं है। इस पर सोचा जाए! समाधान पूर्वक - या संज्ञानीयता में संवेदनाएं नियंत्रित रहती हैं। नियंत्रित संवेदनाओं के साथ ही मानवीयता पूर्ण आचरण का स्वरूप निकल सकता है।
सुविधा-संग्रह के विचार को छोडे बिना समाधान-समृद्धि का कोई कार्यक्रम बनाया ही नहीं जा सकता। "पर-धन" विचारधारा से मुक्त हुए बिना हम "स्व-धन" का कार्यक्रम बना ही नहीं सकते। कोई भी कार्यक्रम मानसिकता या विचार में ही बनता है। किसी कार्यक्रम के मूल में यदि विचार या विश्लेषण अधूरा है, तो उस कार्यक्रम के फल-परिणाम भी अधूरे ही होंगे।
विचार में यदि हम पूरे पड़ते हैं, तो आचरण में हम पूरे पड़ेंगे ही। सुविधा-संग्रह वादी विचार और समाधान-समृद्धि वादी विचार का कोई मेल ही नहीं है। सुविधा-संग्रह वादी विचार प्रिय-हित-लाभ दृष्टि से है। समाधान-समृद्धि वादी विचार न्याय-धर्म-सत्य दृष्टि से है। समाधान-समृद्धि वादी विचार न ईश्वर-वादी विधि से आता है, न भौतिकवादी विधि से आता है। समाधान-समृद्धि वादी विचार में स्थिर होने के लिए ही सह-अस्तित्व-वाद के अध्ययन का प्रस्ताव है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)
1 comment:
Very nice and detailed discussion on this topic.
Post a Comment