सत्ता की प्रेरणा प्रकृति में मध्यस्थ क्रिया रूप में ही है. परमाणु, अणु, वनस्पति संसार, जीव संसार में संतुलन इसी आधार पर है. मानव के भी मध्यस्थ क्रिया के आधार पर संतुलित होने की व्यवस्था है.
मध्यस्थ सत्ता में प्रेरणा से मध्यस्थ क्रिया है. वस्तु प्रेरणा पाता है. प्रेरणा स्वीकृति के रूप में है. मध्यस्थ सत्ता में जड़-चैतन्य वस्तुओं को मध्यस्थ क्रिया के लिए प्रेरणा है.
पूर्णता की प्रेरणा मध्यस्थ क्रिया रूप में है.
प्रश्न: तो क्या जीवन में आत्मा का कोई रोल है उसको पूर्णता (अनुभव) की ओर गतित करने में?
उत्तर: है. भौतिक संसार में भी मध्यस्थ क्रिया का रोल है, पूर्णता की ओर प्रेरित करने का. आत्मा की रौशनी में मानव का क्रियाशील होना अभी शेष है.
प्रश्न: आत्मा की रौशनी में मानव के क्रियाशील होने से पूर्व आत्मा का क्या रोल है?
उत्तर: ज्ञानार्जन के अर्थ में, अध्ययन के अर्थ में.
प्रश्न: क्या जीवन की अन्य क्रियाओं में भी पूर्णता के लिए प्रेरणा है?
उत्तर: आशा को आशा की गम्य स्थली के लिए प्रेरणा है. विचार को विचार की गम्यस्थली के लिए प्रेरणा है. इच्छा को इच्छा की गम्यस्थली के लिए प्रेरणा है. संकल्प को संकल्प की गम्यस्थली के लिए प्रेरणा है.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २०१०, अमरकंटक)
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