ANNOUNCEMENTS



Sunday, January 3, 2021

अध्ययन तर्क से आगे है.


अध्ययन के लिए जिज्ञासा और निष्ठा पैदा होने तक तर्क है.  अध्ययन में तर्क नहीं है.  साक्षात्कार में तर्क नहीं है.  (अनुभवगामी) बोध में तर्क नहीं है.  अनुभव में तर्क नहीं है.  अनुभव प्रमाण बोध में तर्क नहीं है.  फिर चिंतन में भी तर्क नहीं है.  जब दूसरे को समझाने जाते हैं तो उसके लिए चित्रण करने के लिए पुनः तर्क आता है, क्योंकि चित्रण किये बिना समझाना बनता नहीं है.  चित्रण जहाँ है, वहाँ तर्क है.  यह demarcation अपने में बना कर रखना.  

अध्ययन तर्क से आगे है.  अध्ययन है - अस्तित्व में वस्तु को पहचानना, वह समझ में आना.  न्याय, धर्म, सत्य, नियम, नियंत्रण, संतुलन समझ में आना है.  चार अवस्थाओं का स्वभाव-धर्म समझ में आना है.  

"अस्तित्व में ही सब वस्तु है" - यह बात आदर्शवादी स्पष्ट नहीं कर पाए.  भौतिकवादी तरीके में यह स्पष्ट करना कोई ज़रुरत नहीं रहा, उनका तर्क-संगत विधि चित्रण तक ही रहा और वह चित्रण पांच संवेदनाओं को राजी रखने में संलग्न रहा.

भौतिकवादी और आदर्शवादी दोनों पठन तक ही पहुंचे.  भौतिकवादी पठन के साथ प्रयोग में चले गए.  आदर्शवादी पठन के साथ उपदेश में चले गए.  धीरे-धीरे उपदेश वाले कमज़ोर पड़ गए, प्रयोग वालों का बोलबाला हो गया.  उसके चलते यह धरती ही बीमार हो गयी.  इस लिए पुनर्विचार की ज़रूरत आ गयी.  तब जाकर अध्ययन की बात स्थापित हुई.  

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (मार्च २००८, अमरकंटक)