जो कुछ भी प्रकृति में प्रकटन हुआ है वह नियम से हुआ है. नियम के मूल में आशय होता है. वह आशय क्या है? वह आशय साम्य ऊर्जा (सत्ता) है. साम्य ऊर्जा मनुष्य प्रकृति में ज्ञान स्वरूप में है. वह ज्ञान प्रमाणित हो जाए - इसलिए मानव तक प्रकृति में प्रकटन हुआ. एक तरफ़ परमाणु में गठनपूर्णता और दूसरी तरफ रचना में विकास होते हुए मानव शरीर रचना का प्रकटन हुआ. मानव शरीर रचना द्वारा ही जीवन सहज कल्पनाशीलता-कर्म स्वतंत्रता प्रमाणित है. उसके आधार पर मानव में ज्ञान की आवश्यकता है. मानव की परिभाषा है - मनाकार को साकार करने वाला और मनः स्वस्थता का आशावादी व प्रमाणित करने वाला. मनाकार को साकार करने में मानव सफल हुआ है, मनः स्वस्थता का प्रमाणित होना अभी शेष है. उसकी आवश्यकता आपको भी लगती है, मुझे भी लगती है - इस आधार पर हम काम कर रहे हैं.
- श्रद्धेय ए नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (मार्च २००८, अछोटी)
- श्रद्धेय ए नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (मार्च २००८, अछोटी)